इंदौर। दसवीं-बारहवीं परीक्षा में शामिल होने वाले विद्यार्थियों के दस्तावेज सत्यापन की प्रक्रिया माध्यमिक शिक्षा मंडल ने फिर बदल दी है। दो साल पहले जहां अधिकारियों ने सत्यापन करने का जिम्मा स्कूलों के प्राचार्यों को सौंपा था। मगर अधिकारियों के बदलते ही बोर्ड ने व्यवस्था खत्म कर दी। अब विद्यार्थियों की पात्रता के अलावा दस्तावेज जांचने का काम बोर्ड ने अपने हाथों में लिया है। निजी स्कूलों को निर्देश देते हुए तीन दिन के भीतर विद्यार्थियों के दस्तावेज भेजने के निर्देश दिए है। उधर स्कूलों ने आपत्ति लेते हुए कहा कि दशहरा की छुट्टी होने के बावजूद सिर्फ दस्तावेज देने के लिए प्रबंधन को स्कूल खोलना पड़ेगा। हालांकि जिन कागजात की बोर्ड को जरूरत है। वह आनलाइन फार्म भरने के दौरान विद्यार्थियों ने जमा किए है। दरअसल 2020 में बोर्ड के आयुक्त ने परीक्षा में शामिल विद्यार्थियों के दस्तावेज सत्यापन करने की जिम्मेदारी सरकारी और निजी स्कूलों के प्राचार्यों को दी थी। तत्कालीन अधिकारियों का मानना था कि व्यवस्था बदलने से फोटोकापी से बोर्ड में रद्दी कम और कागजों का कम इस्तेमाल होगा। साथ ही कार्यों का विभाजन होगा। यह प्रक्रिया स्कूलों को काफी पसंद आई, क्योंकि प्रत्येक स्कूल में 200-300 छात्र-छात्राएं है। उनके दस्तावेज भेजने में स्कूलों को काफी समय लगता था। सिर्फ पात्रता फार्म विद्यार्थियों से भरवाकर देना रहता था। मगर अधिकारियों के बदलते ही एनवक्त पर बोर्ड ने पुरानी व्यवस्था लागू करने पर जोर दिया है और दस्तावेज सत्यापन और पात्रता जांचने का काम अधिकारियों के पास पहुंच गया है।तीन अक्टूबर को पत्र जारी कर स्कूलों को पहले सात अक्टूबर तक विद्यार्थियों के दस्तावेज मांग थे। इस पर कुछ स्कूलों ने आपत्ति ली और अधिकारियों से फोन पर चर्चा की। उनका कहना था कि छह अक्टूबर तक स्कूल बंद है। शिक्षकों को भी आने से माना कर दिया है फिर ऐसे में सात अक्टूबर को विद्यार्थियों की जानकारी देना संभव नहीं है। बाद में बोर्ड ने तीन से चार दिन प्रबंधन को अतिरिक्त दिए हैं। सहयोग अशासकीय विद्यालय संघ के सचिव आशीष तिवारी का कहना है कि पेपरलेस के लिए दो साल पहले अधिकारियों ने व्यवस्था बदली थी, जो दोबारा लागू कर दी है