कौशाम्बी। यमुना के तराई इलाकों में बसे बाढ़ ग्रस्त मल्हीपुर,पिपरहटा,उमरवल, केवट पुरवा के ग्रामीणों ने बताया की यमुना की बाढ़ मे उनकी ज्वार, तिल, धान,अरहर ,कद्दू ,मिर्च आदि की फसलें नष्ट हो गई हैं। साथ ही किन्हाई नदी के प्रकोप से चकपिनहा,बेनपुर,कटैया,नंदा का पूरा मैं भी फसलों का भारी नुकसान हुआ है प्रकोप इतना भयानक है की चकपिन्हा मे तो किलनहाई नदी में अमरूद की बाग भी समा गई है। यही किसानों की आमदनी का मुख्य जरिया था जिससे उनके परिवारों पर आर्थिक संकट मंडरा रहा है साथ ही पशुओं के लिए चारे की भी समस्या आ गई है। जलस्तर थोड़ा कम हुआ है जिससे लोगों मे बाढ़ का भय कम हुआ है।
अंधेरे में बीत रही राते नहीं कोई वैकल्पिक व्यवस्था
चायल तहसील के मल्हीपुर, कटैया,पिपरहटा, बाढ़ में सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं जिस कारण पिछले 5 दिनों से विद्युत विभाग ने एहतियातन इन गांव की विद्युत आपूर्ति रोक रखी है,और प्रशासन की तरफ से कोई वैकल्पिक व्यवस्था ना होने के कारण ग्रामीणों के सामने अंधेरा होने पर जहां जहरीले जीव जंतु का डर बना रहता है ,वही वही दूसरी ओर विद्युत उपकरण डिब्बे बन चुके है। टेलीविजन , मोबाइल न चलने के कारण ग्रामीण सुशील कुमार,नंदू, रामचंद्र ,प्रवेश कुमार बता रहे हैं कि गांव के टापू बनने से सारे संपर्क टूट चुके हैं,जैसे वह किसी दूसरे द्वीप में रह रहे हैं। रोशनी कोई भी व्यवस्था नहीं है एकमात्र मोमबत्ती ही सहारा है। अब तक प्रशासन की तरफ से मात्र आश्वासन ही मिल रहा है।
कहीं बंद ताले, तो कहीं 10 गद्दे ये है बाढ़ राहत शिविर
चायल तहसील में बाढ़ आपदा से टापू बने मल्हीपुर का बाढ़ राहत शिविर पुरखास के सामुदायिक भवन और कमपोजिट विद्यालय को बनाया गया है जहां पड़ताल के दौरान शिविर में ताला लगा मिला। वही बाढ़ ग्रस्त पिपरहटा का राहत शिविर जय भीम शिक्षण संस्थान तिलहापुर मे व्यवस्था के नाम पर मात्र 10 गद्दे रखे मिले जहां दावे किए जा रहे हैं की बाढ़ राहत शिविरों में कर्मचारी हर समय उपस्थित रहेंगे और बाढ़ पीड़ितों की मदद करेंगे शिविरों में ग्रामीणों के रहने, खाने स्वास्थ्य संबंधित सेवाओं की समुचित व्यवस्था होगी जोकि पीड़ितों के लिए महज सपना है। पिपरहटा के ग्रामीणों का कहना है की हमें तो पता ही नहीं है कि हमारे लिए कहीं राहत शिविर भी है। यही हाल मल्हीपुर के ग्रामीणों ने भी बताया। क्योंकि वास्तव में राहत शिविरों की व्यवस्था महज कागजों तक ही सीमित है सच कहें तो रहने भोजन की व्यवस्था ना होने से दोनों राहत शिविरों में एक भी शरणार्थी नहीं मिले।