मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क की चर्चा इन दिनाें देश-दुनिया में है। कारण, भारत में 70 साल बाद चीतों की आमद यहीं पर हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में नामीबिया से आए 8 चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा है। असल में इसका पूरा नाम पालपुर-कूनो नेशनल पार्क है। 41 साल पहले इस अभयारण्य की नींव रखने वाले पालपुर राजघराने को इस नेशनल पार्क की वजह से ख्याति तो मिली, लेकिन वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। अब वे सम्मान और अपना हक वापस पाने के लिए कोर्ट पहुंचे हैं।
पालपुर राजघराने के वंशज ने कोर्ट में मुआवजा समेत अभयारण्य के अंदर किला, गढ़ी, मंदिर में जाने की इजाजत और पालपुर की पहचान को यथावत रखने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की है। पालपुर राजघराने ने 222 बीघा जमीन और किला अभयारण्य के लिए दिया था। राज परिवार ग्वालियर में रहता है।कृष्णराज सिंह पालपुर ने बताया- जिन शर्तों पर हमारे घराने ने यह जमीन अभयारण्य के लिए दी थी। उन शर्तों का पालन नहीं किया जा रहा है। न तो हमें हमारे किले और मंदिर के अंदर जाने दिया जा रहा है, न ही सरकार ने हमें मुआवजा दिया है। इतना ही नहीं, चीता विस्थापन के कार्यक्रम में एक बार भी हमारे घराने का नाम नहीं लिया गया। इसी सम्मान को पाने के लिए हम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। हमने मुआवजा राशि के अलावा पुश्तैनी किले और मंदिर में आने-जाने की अनुमति देने व नेशनल पार्क का नाम पालपुर नेशनल पार्क ही रहने देने की मांग की है।
स्व. जगमोहन सिंह पालपुर, इन्होंने 1981 में पालपुर-कूनो सेंचुरी की नींव रखी थी।
शेर के लिए जमीन दी, लेकिन आए चीते, इसलिए वापस करें संपत्ति अभयारण्य के लिए अपनी 222 बीघा जमीन और किला देने वाले पालपुर राजघराने ने अब अपनी संपत्ति वापस मांगी है। राजपरिवार के वंशज ने राज्य सरकार के खिलाफ कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि उन्होंने अपनी संपत्ति शेरों के लिए दी थी। अभयारण्य में शेर नहीं आए, अब चीतों को लाया गया, इसलिए उन्हें उनकी संपत्ति वापस दी जानी चाहिए। राजघराने के लोगों का यह भी कहना है कि उनकी संपत्ति का अवैध तरीके से अधिग्रहण किया गया और कोई मुआवजा भी नहीं मिला। उन्हें किले के अंदर स्थित अपने पुश्तैनी मंदिर में पूजा करने तक की इजाजत नहीं है।
1981 में छोड़ना पड़ा था किला और मंदिर
कूनो नदी के किनारे स्थित राजघराने का किला पालपुर गढ़ी अभयारण्य के कोर एरिया में है। यह किला नदी के पास पूरे नेशनल पार्क के ठीक बीच में स्थित है। 1981 में पालपुर राजघराने के वंशज स्व. राजा साहब जगमोहन सिंह पालपुर, जो विजयपुर विधानसभा से 3 बार विधायक भी रहे। उन्होंने अपने पूर्वजों का सपना पूरा करने अपनी 222 बीघा जमीन वन्य जीव अभयारण्य के लिए दी थी और सेंचुरी का उद्घाटन किया था। उस समय शासन ने कई शर्तों के साथ वादे भी किए थे। राजपरिवार ने अपना किला भी खाली कर दिया था। किले के अंदर ही पुश्तैनी मंदिर और बावड़ी थी। उनसे वादा किया गया था कि साल में होने वाली पूजा करने से उन्हें कभी नहीं रोका जाएगा। हालांकि, बाद में उन्हें रोक दिया गया। इसके अलावा अभयारण्य क्षेत्र में आने वाले 24 गांवों को भी खाली कराया गया था। अपने ही किले, मंदिर में जाने के लिए लेनी पड़ती है इजाजत पालपुर राजघराने को अपनी संपत्ति के बदले कोई मुआवजा भी नहीं मिला। उन्होंने मुआवजे की मांग की थी, लेकिन PWD ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि संपत्तियां 100 साल से ज्यादा पुरानी हैं और उनकी जीरो वैल्यू है। इस रिपोर्ट के आधार पर मुआवजे की मांग खारिज कर दी गई। राजपरिवार के लोगों को अभयारण्य के अंदर स्थित अपनी पुश्तैनी जागीर को देखने के लिए आम लोगों की तरह एंट्री लेनी होती है।
राजपरिवार को पुश्तैनी मंदिर में भी पूजा की इजाजत नहीं
अभयारण्य में गिर के शेर को शिफ्ट करने से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस इलाके में रियल एस्टेट की कीमतें आसमान छूने लगीं। हालांकि, न तो बाघ यहां लाए गए और न ही पालपुर राजघराने को कोई मुआवजा मिला। राजघराने के लोगों को अभयारण्य के अंदर स्थित उनके पारिवारिक मंदिर में पूजा करने की भी इजाजत नहीं है। वन विभाग ने इस पर रोक लगा रखी है। अब उन्होंने वन विभाग के खिलाफ हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की है।
1666 ईसवीं में पालपुर में काबिज हुआ था करौली का यह राजवंश
राजवंश की बात करें कि ये ठाकुर चन्द्रवंशी जोदा राजा करौली के रिश्तेदार हैं। इस राजपरिवार का राज पहले करौली से लेकर श्योपुर-विजयपुर तक था। सन् 1666 में इस वंश के सबसे शक्तिशाली शासक बल बहादुर सिंह पालपुर में काबिज हुए। इसके बाद नारायण सिंह, बलजोर सिंह व तेज सिंह पालपुर पर काबिज रहे। 1794 में ठाकुर जवान सिंह इस खानदान के जागीरदार बने। इसके बाद यह पालपुर राजवंश कहलाया। उनके बाद भवानी सिंह, सूरजमल और बलभद्र सिंह यहां के शासक रहे। इसके बाद किशोर सिंह फिर राजा साहब जगमोहन सिंह ने राज किया। स्व. जगमोहन सिंह विजयपुर से 3 बार विधायक रहे थे। उन्हीं के समय 1981 में इस नेशनल पार्क की एक अभयारण्य के रूप में नींव रखी ।
किसने कराया किले का निर्माण?
पालपुर कूनो नेशनल पार्क के अंदर पालपुर राजपरिवार के किले को लेकर अलग-अलग चर्चा है। कुछ लोग कहते हैं कि जब पालपुर पर यह राजपरिवार काबिज हुआ तो यह किला जीता था, लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है कि पालपुर गढ़ी का निर्माण 18वीं सदी की शुरुआत में करौली के राजा गोपाल सिंह ने कराया था। यह चारों ओर ऊंची दीवार से घिरा है। इसके अलावा कूनो नदी इसके प्राकृतिक सुरक्षा दीवार के रूप में काम करती है। किले के अंदर एक मंदिर और कचहरी अब भी मौजूद है। किले के अंदर जाने के लिए दो दरवाजे हैं, जिनमें से एक दो मंजिला है।
अब कोर्ट में राजपरिवार
अब पालपुर राजपरिवार ने अपने मुआवजे, किले और मंदिर के रख-रखाव की मांग के साथ ही नेशनल पार्क का नाम कूनो पालपुर रखा जाए, इसे लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। मामला विजयपुर सेशन कोर्ट में है। राजपरिवार के वंशज कृष्णराज सिंह पालपुर ने बताया कि सरकार ने उनके साथ धोखा किया है। जो 222 बीघा जमीन, किले, मंदिर गढ़ी, 24 गांव के लोगों को साथ लेकर वहां से चले आने का मुआवजा सिर्फ 45 बीघा जमीन से किया है, इसलिए वह अब कोर्ट की शरण में हैं।
उनके पूर्वजों ने यह जमीन वन्य जीवों के संरक्षण के लिए दी थी, लेकिन जो शर्तें और वादे किए गए थे, वह पूरे नहीं किए गए। 19 सितंबर को विजयपुर में इस मामले की सुनवाई थी, जिसमें राजपरिवार की तरफ से वकील एमएम पाराशर ने पैरवी की। उन्होंने इस पूरे मामले में सरकार से पक्ष रखने के लिए कहा है। अगली सुनवाई 29 सितंबर को है, जिसमें कलेक्टर को अपना पक्ष रखना है।
सिंधिया राजवंश के नजदीक रहा है पालपुर घराना
पालपुर राजवंश के वंशज कृष्णराज सिंह ने बताया कि उनका परिवार वैसे तो करौली राजपरिवार से ताल्लुक रखता है, पर सिंधिया राजपरिवार यहां आया तो उनसे उनके मैत्रीपूर्ण संबंध बन गए। सिंधिया राजवंश के साथ इस राजपरिवार के शासकों ने काफी शिकार किए और अन्य यादें जुड़ी हुई हैं। आज भी दोनों परिवार एक-दूसरे के अच्छे और बुरे समय में साथ खड़े नजर आते हैं।




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