ग्वालियर। तकनीक के इस युग में अभी भी मध्य प्रदेश में दो हजार गांव ऐसे हैं, जहां पर लोग मोबाइल या फोन का उपयोग नहीं करते । ग्वालियर में भी दो सौ गांव ऐसे हैं जहां पर लोग मोबाइल का उपयोग नहीं किया जाता है। हालांकि इन गांवों के लोग शहर में आकर मोबाइल का भरपूर उपयोग करते हैं। लेकिन गांव में कोई भी व्यक्ति मोबाइल का उपयोग नहीं करता। उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन गांव में किसी भी कंपनी का नेटवर्क नहीं मिलता है। इस कारण से लोग मोबाइल का उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे ही गांव की सूची भारत सरकार ने तैयार कराई । यदि पूरे देश की बात करें तो यह संख्या हजारों में है। ऐसे गांव में बीएसएनएल को नेटवर्क पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई है।
बीएसएनएल के अफसरों का कहना है कि जैसे ही 4जी नेटवर्क आएगा तो उसका नेटवर्क सबसे पहले इन गांव में पहुंचाने का काम किया जाएगा। इधर बीएसएनएल के थ्री जी नेटवर्क ठीक से काम नहीं कर रहा है। इस कारण से कई लोग बीएसएनएल का नेटवर्क छोड़कर दूसरे नेटवर्क का विकल्प चुन रहे हैं। यदि पिछले छह महीने की बात करें तो बीएसएनएल के अफसरों का कहना है कि करीब 10 हजार ग्राहक बीएसएनएल छोड़कर दूसरी कंपनी का विकल्प चुन चुके हैं। हालांकि काफी सारे ग्राहक दूसरी कंपनियों का नेटवर्क छोड़कर बीएसएनएल में भी आए हैं। असल में थ्रीजी नेटवर्क देने के लिए जिन स्थानों पर टावर लगाए गए हैं वह सभी बिजली पर आधारित है। जबतक बिजली की सप्लाई ठीक से रहती है तबतक तो नेटवर्क सही से चलता है। लेकिन बिजली गुल होने पर बीएसएनएल का नेटवर्क भी गुल हो जाता है। बीएसएनएल के शहर व ग्रामीण क्षेत्र में जितने भी टावर लगे हैं उन्हें विद्युत विभाग से बिजली की सप्लाई दी जाती है। बिजली गुल होने की स्थिति में बैट्री बैकअप की व्यवस्था की गई है। लेकिन लंबे समय से बैट्री खराब पड़ी हुई हैं। इसलिए बिजली गुल होते ही नेटवर्क भी गुल हो जाता है। अचलेश्वर मंदिर पर लगे टावर की बैट्री पिछले एक साल से खराब है। इसी तरह से गोला का मंदिर,बहोड़ापुर, ग्वालियर, हजीरा क्षेत्र के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में लगे टावर की बैट्री खराब होने से परेशानी चल रही है। अफसरों का कहना है कि जितने सामन की जरुरत होती है उसकी मांग आला अधिकारियों को भेजी भी जाती है पर मांग के अनुरुप सामान की उपलब्धता महज 20 फीसद ही होती है। इससे परेशानी लंबे समय से बनी हुई है।