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न्यायालय के स्थगन पर चल रहे आठ में से तीन अधिकारी सेवानिवृत्त

Thursday, October 13, 2022

/ by Today Warta



घोटाला में लिप्त राजधानी के पांच अन्य बाल विकास अधिकारी पर भी कार्रवाई नहीं। 2017 में खला 

था मामला, 14 जिलों में मिली थी 26 करोड़ रुपये की गड़बड़ी

मामले की जांच शुरू हुई, तो 14 जिलों में गड़बड़ी मिली

भोपाल (राज्य ब्यूरो)। मानदेय घोटाला में लिप्त राजधानी के आठ में से तीन बाल विकास अधिकारी (राहुल संधीर, मीना मिंज और कृष्णा बैरागी) सेवानिवृत्त भी हो गए और पुलिस ने न्यायालय में चालान तक प्रस्तुत नहीं किया है। ये अधिकारी पिछले सवा साल से हाई कोर्ट के स्थगन पर चल रहे थे। इस दौरान महिला एवं बाल विकास विभाग ने स्थगन खत्म कराने के लिए न्यायालय में जल्दी सुनवाई का आवेदन भी लगाया, पर सफलता नहीं मिली। उधर, अन्य पांच अधिकारियों पर भी कार्रवाई नहीं हो रही है। ये सभी न्यायालय के स्थगन पर चल रहे हैं

वर्ष 2017 में भोपाल में मानदेय घोटाला सामने आया था। मामले की जांच शुरू हुई, तो 14 जिलों में गड़बड़ी पकड़ी गई। महिला एवं बाल विकास संचालनालय और जिले के अधिकारियों ने मिलकर करीब 26 करोड़ रुपये की गड़बड़ी की। वे एक माह में दो बार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय जारी करते थे और एक बार की राशि चपरासी, कंप्यूटर आपरेटर और अपने परिचितों के बैंक खातों में जमा करा देते थे। यह गड़बड़ी वर्ष 2014 से चल रही थी। मामले में भोपाल के बाल विकास परियोजना अधिकारी राहुल संधीर, कीर्ति अग्रवाल, सुमेधा त्रिपाठी, कृष्णा बैरागी, मीना मिंज, बबीता मेहरा, नईम खान और अर्चना भटनागर को निलंबित किया गया था। इसके अलावा पांच लिपिकों को पहले निलंबित किया, बाद में उनकी सेवाएं समाप्त की गईं।

लोक सेवा आयोग दे चुका है बर्खास्त करने की मंजूरी

मामले में सरकार ने राहुल संधीर, कीर्ति अग्रवाल, कृष्णा बैरागी सहित एक अन्य अधिकारी का प्रकरण बर्खास्तगी के लिए लोक सेवा आयोग को भेजा था। आयोग ने भी मंजूरी दे दी थी, पर स्थगन के चलते उन्हें बर्खास्त नहीं किया जा सका।

दो जांच पर मिला था स्थगन

निलंबित अधिकारियों ने एक मामले के लिए एक साथ दो जांच कराने पर आपत्ति उठाते हुए हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। जिस पर स्थगन मिला है इन अधिकारियों का तर्क है कि एक ही मामले में दो कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। जबकि विभाग का मानना है कि विभाग में रहते हुए आर्थिक गड़बड़ी करने के कारण विभागीय जांच होनी चाहिए और मामला अमानत में खयानत का भी बनता है इसलिए पुलिस कार्रवाई भी होनी चाहिए। इन्हीं तर्कों को आधार बनाकर विभाग स्थगन आदेश निरस्त कराने की कोशिश कर रहा है।

इनका कहना है

मामले में लिप्त सभी अधिकारियों के खिलाफ एफआइआर कराई गई है। लोक सेवा आयोग से बर्खास्त करने की मंजूरी ली है। न्यायालय के स्थगन को खत्म कराने के लिए जल्द सुनवाई का आवेदन भी लगाया है।

- डा. रामराव भोंसले, संचालक, महिला एवं बाल विकास संचालनालय

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