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मध्य प्रदेश में पक्षपात के शिकार गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी

Wednesday, November 30, 2022

/ by Today Warta



भोपाल। मध्य प्रदेश में गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी लगातार पक्षपात के शिकार हो रहे हैं। वर्ष 2016 में चार अधिकारी मंजू शर्मा, संजय गुप्ता, शमीमउद्दीन और श्रीकांत पांडे को आइएएस अवार्ड हुआ था। इसके बाद प्रदेश में गैर प्रशासनिक सेवा के किसी अधिकारी का नाम ही आइएएस अवार्ड के लिए नहीं भेजा गया। कमल नाथ सरकार में इसकी पहल जरूर हुई थी, लेकिन राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को ही मौका दिया गया। इस वर्ष भी आइएएस अवार्ड के लिए 18 पद उपलब्ध हैं, लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग ने राज्य प्रशासनिक सेवा के 54 अधिकारियों के नाम संघ लोक सेवा आयोग को भेजे हैं। विभागीय पदोन्‍नति समिति की बैठक दिसंबर में होना प्रस्तावित है। पदोन्नति के माध्यम से आइएएस बनने वाले अधिकारियों की सेवानिवृत्ति पर उतने ही पद राज्य प्रशासनिक सेवा या गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से भरे जा सकते हैं। वर्र्ष 2015 तक गैर प्रशासनिक सेवा यानी राज्य लोक सेवा आयोग के माध्यम से अन्य विभागों में होने वाली सीधी भर्ती के अधिकारियों को मौका मिलता रहा है। इसके बाद राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की अधिक संख्या को देखते हुए गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को मौका देना बंद कर दिया। जब 2018 में कमल नाथ सरकार बनी तो 2019 में तत्कालीन सामान्य प्रशासन मंत्री डा. गोविन्द सिंह ने गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को चार पद देने का प्रस्ताव दिया था। कमल नाथ भी इससे सहमत थे, लेकिन बाद में जब सामान्य प्रशासन विभाग ने संघ लोक सेवा आयोग को जो प्रस्ताव भेजा उसमें केवल राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के नाम थे। तब से ही गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी पक्षपात के शिकार हैं। जबकि, ये भी उसी भर्ती प्रक्रिया से आते हैं जिससे राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आते हैं। अपने संवर्ग में उच्चतम पद पर पहुंचने के बाद गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के पास कोई विकल्प नहीं रह जाता है। कई अधिकारी तो ऐसे हैं जो एक ही पद पर वर्षों से काम कर रहे हैं।

अनुभव का लाभ लेना चाहिए- केएस शर्मा

पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि यह स्थिति ठीक नहीं है। गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी क्षमतावान होते हैं। उनके अनुभव का लाभ लेना चाहिए। इनका चयन तो राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की तुलना में ज्यादा कठिन होता है। राज्य से प्रस्ताव जाने के बाद संघ लोक सेवा आयोग के स्तर पर पहले छानबीन होती है और उसके बाद साक्षात्कार का सामना करना होता है। अब तो केंद्र सरकार निजी क्षेत्र से क्षमतावान लोगों का सीधे नियुक्ति दे रही है। नियमों में प्रविधान भी है। हालांकि, यह राज्य सरकार के ऊपर निर्भर करता है कि वे गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को मौका देना चाहती है या नहीं।

अनिवार्यता नहीं है

उधर, सामान्य प्रशासन कार्मिक की प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ मुखर्जी का कहना है कि यह अनिवार्र्य नहीं है कि गैर प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के नाम आइएएस अवार्ड के लिए प्रस्तावित किए जाएं। इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार राज्य सरकार को रहता है।

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