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मध्य प्रदेश में निजी विश्वविद्यालयों में छात्रवृत्ति घोटाला, जांच समिति बनी लेकिन रिपोर्ट नहीं आई

Sunday, December 4, 2022

/ by Today Warta



भोपाल(राज्य ब्यूरो)। मध्य प्रदेश के निजी विश्वविद्यालयों में गड़बड़ी का मामला सिर्फ डिग्रियों के फर्जीवाड़े या पैसे लेकर बेचने तक ही सीमित नहीं है। छात्रवृत्ति के मामले में भी गड़बड़ियों की जांच चल रही है। इसके लिए पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के आयुक्त गोपाल चंद्र डाड ने अधिकारियों की कमेटी बनाई गई है, लेकिन जांच की धीमी गति के चलते इसने कई महीनों में भी जांच पूरी नहीं की। इस कमेटी का अध्यक्ष संचालनालय के उप संचालक नीलेश देसार्ई को बनाया गया है। देसाई के अलावा समिति में तीन अन्य सदस्य भी निुयक्त किए गए हैं। पीएमओ-सीएमओ के निर्देश पर बनी जांच कमेटी- दरअसल, प्रधानमंत्री कार्यालय को निजी विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रवृत्ति में गड़बड़ी की शिकायत मिली थी। इस शिकायत को पीएमओ के डायरेक्टर रघुराज राजेंद्रन ने मुख्यसचिव इकबाल सिंह बैंस को भेजी थी। 15 मार्च 2021 को इस शिकायत में कहा गया था कि आरकेडीएफ ग्रुप ने छात्रों के फर्जी नामों के आधार पर छात्रवृत्ति में अनियमितता की है। साथ ही उसके द्वारा शिक्षकों के फर्जी नामों के आधार पर कालेजों की मान्यता प्राप्त की है। इस आधार पर पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के आयुक्त गोपाल चन्द्र डाड ने 29 अगस्त 2022 को प्रधानमंत्री कार्यालय से प्राप्त पत्र और मुख्यमंत्री हेल्प लाईन पर प्राप्त शिकायत का हवाला देते हुए लगभग सवा साल बाद एक जांच कमेटी का गठन किया।

सीएम हेल्पलाइन ने कहा- गंभीर है शिकायत

सीएम हेल्पलाईन में हुई शिकायत की जांच शुरू हुई तो पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने आरकेडीएफ ग्रुप से वर्ष 2012-13 से वर्ष 2020-21 तक की जाकारी मांगी गई। विभाग ने यह भी कहा कि शिकायत गंभीर एवं विस्तृत प्रकृति की है, जिस पर शासन स्तर से कार्रवाई संभव है इसलिए शासन स्तर से ही निर्णय लिया जाए। इस समूह के मप्र में पांच विश्वविद्यालय संचालित हो रहे हैं।इनमें आरकेडीएफ विवि भोपाल,श्री सत्य साई विवि सीहोर, एसआरके विवि भोपाल, डा एपीजे अब्दुल कलाम विवि इंदौर और भाभा विवि भोपाल हैं। इस बारे में आयुक्त पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग गोपाल चन्द्र डाड ने कहा कि जांच कमेटी की रिपोर्ट अभी उनके पास नहीं आई है।

शिक्षक नहीं मिले

जांच कमेटी ने जब भाभा विवि की जांच की तो जिन अध्यापकों के नाम दिए गए थे, वे मिले नहीं। उनसे फोन पर बात की तो नंबर गलत मिले।

किसी को भी बना देते हैं कुलपति

निजी विवि में फर्जीवाड़ा सिर्फ उच्चशिक्षा के साथ नहीं हो रहा है बल्कि इनका प्रबंधन नियम-कानून को भी नहीं मानता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के मुताबिक न्यूनतम 10 वर्षों तक प्राध्यापक के पद पर रहे व्यक्ति को ही कुलपति बनाया जा सकता है। वहीं निजी विवि अधिनियम के तहत पहले कुलपति की नियुक्ति का अधिकार सिर्फ कुलाधिपति को ही है लेकिन भाभा विश्वविद्यालय में डा एमसी किशोरे को कुलपति बना दिया गया। किशोरे का नाता कभी उच्चशिक्षा से नहीं रहा। वे नायब तहसीलदार के पद पर थे और बाद में एसडीएम रहे। बाद में तत्कालीन मंत्री उमाशंकर गुप्ता के ओएसडी रहे।

कुलपति बनाने के लिए जो नियम हैं, उसका पालन निजी विश्वविद्यालयों को करना होगा। 

- शैलेंद्र सिंह, अपर मुख्यसचिव मप्र शासन

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