भोपाल (राज्य ब्यूरो)। मध्य प्रदेश में मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिलने की बड़ी वजह डाक्टरों की विसंगतिपूर्ण पदस्थापना है भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों में स्वीकृत पद से डेढ़ से दो गुना ज्यादा डाक्टर पदस्थ हैं। निजी प्रैक्टिस और बच्चों की पढ़ाई के लिए बड़ी संख्या में डाक्टरों ने बड़े शहरों में पदस्थापना करा रखी है। छोटे और पिछड़े जिलों में डाक्टर जाना नहीं चाहते। इस कारण यहां पर स्वीकृत पदों से 50 प्रतिशत से भी कम डाक्टर हैं। उदाहरण के तौर पर मंडला और मंदसौर में 28 प्रतिशत और झाबुआ में सिर्फ 35 प्रतिशत विशेषज्ञ ही पदस्थ हैं। भोपाल में स्वीकृत पद से 56 प्रतिशत ज्यादा विशेषज्ञ और चिकित्सा अधिकारी 62 प्रतिशत अधिक हैं। ग्वालियर में विशेषज्ञ 59 प्रतिशत व चिकित्सा अधिकारी 94 प्रतिशत, इंदौर में विशेषज्ञ 18 प्रतिशत और चिकित्सा अधिकारी 86 प्रतिशत ज्यादा हैं। समस्या यह है कि छोटे जिलों में निजी विशेषज्ञ बहुत कम हैं। ऐसे में सरकार को इन जिलों को प्राथमिकता में रखना चाहिए, पर उल्टा हो रहा है। बड़े शहरों के अस्पतालों में पहले से ही स्वीकृत पद भरे हुए थे। लोक सेवा आयोग से नई नियुक्तियां होने के बाद भी डाक्टरों को ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों या छोटे जिलों में पदस्थ करने की जगह बड़े शहरों के अस्पतालों में पदस्थ किया था।
शहर में रहने की वजह
निजी प्रैक्टिस और बच्चों की पढ़ाई के लिए बड़ी संख्या में डाक्टरों ने बड़े शहरों में पदस्थापना करा रखी
मरीजों को हो रही परेशानी
मध्य प्रदेश में अधिकांश मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा, ऐसे में परेशानी और बढ़ रही है।
विशेषज्ञों की सीधी भर्ती भी की जा रही है। 87 स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ मिल गए हैं। अन्य पदों के लिए भी साक्षात्कार चल रहा है। इनकी पदस्थापना छोटे जिलों व विशेषज्ञ विहीन अस्पतालों में की जाएगी। - डा. प्रभुराम चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री