मध्य प्रदेश सरकारी विभागों में 94 हजार पद खाली शिक्षा स्वास्थ्य जैसे विभागों के हालात लचर
मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नए साल में शिरडी से लौटते ही बड़ा ऐलान कर दिया। ये ऐलान इसलिए था क्योंकि प्रदेश चुनावी साल में प्रवेश कर चुका है। सीएम ने सारे मंत्री और अधिकारियों को बुलाकर साफ कह दिया कि अगस्त तक एक लाख 15 हजार लोगों को सरकारी नौकरी मिल जानी चाहिए। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि जिन विभागों पर सरकार का फोकस है और जो चुनाव में बड़ा असर डालने वाले हैं उनमें ही 94 हजार पद खाली हैं। यानी 55 में से 10 विभाग ऐसे हैं जो सालों से खाली पड़े हैं और वे ही आम आदमी पर सबसे ज्यादा असर डालते हैं। इनकी चरमराती व्यवस्थाएं ही शिवराज की माथें पर सलवटें ला रही हैं।
सरकार का 15 अगस्त तक ये पद भरने का वादा
प्रदेश में 55 सरकारी विभाग काम करते हैं। इनमें से दस विभाग ऐसे हैं जिनमें सबसे ज्यादा पद खाली हैं। ये वो विभाग हैं जिनका सीधा सरोकार उस आम आदमी से है जो सूबे में सरकार बनाता है। सरकार की एक साल में एक लाख नौकरी देने का वादा दरअसल इन लोगों को खुश करने के लिए ही था। सरकार ने सारे विभागों से खाली पदों की जानकारी मांगी थी ताकि चुनावी साल में आखिरी बजट में सरकार पैसों का हिसाब किताब कर सके। जीएडी के पास जो जानकारी आई उनमें बड़े चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। 55 विभाग में से दस विभागों में ही 94 हजार पद खाली पड़े हैं। सालों से खाली पड़े इन विभागों की लचर व्यवस्थाओं से आम आदमी परेशान है। आम आदमी,गरीब,किसान और महिलाएं यदि परेशान हैं तो बीजेपी के लिए परेशान होने वाली बात है। यही कारण है कि सरकार ने 15 अगस्त तक ये पद भरने का वादा कर लिया।
*विभागों से और रिक्त पद तलाश करने को कहा: नरोत्तम मिश्रा*
गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रियों और अधिकारियों को 2023 का रोडमैप बताया है। सरकारी विभागों में खाली 1 लाख 14 हजार पद 15 अगस्त तक भरने के निर्देश दिए हैं। विभागों से और रिक्त पद तलाश करने को कहा गया है जिससे युवाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिल सके।
आइए बताते हैं कि वे कौन से विभाग हैं जिनमें इतने पद सालों से खाली पड़े हैं। जो सरकार के लिए चिंता का सबब हैं।
कुल खाली पद- 1 लाख 14 हजार 111
स्कूल शिक्षा- 30 हजार 496
जनजातिय कार्य- 22 हजार 69
गृह- 14 हजार 686
स्वास्थ्य- 8 हजार 522
उच्च शिक्षा-5 हजार 851
कृषि- 3 हजार 844
तकनीकी शिक्षा- 2 हजार 937
आयुष- 2 हजार 805
पीएचई- 1 हजार 363
महिला एवं बाल विकास- 1 हजार 248
दस विभागों में खाली पद- 93 हजार 821
सरकार कहती है कि जो प्रमुख विभाग हैं उनको प्राथमिकता पर रखा गया है। सामान्य प्रशासन राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि हमको अलग से फंड का इंतजाम करना होगा। शिक्षा और स्वास्थ्य ऐसे विभाग हैं जहां पर हमको नियुक्तियां करनी ही होंगी। परमार कहते हैं कि प्राथमिकता के आधार पर ही नई भर्तियां की जाएंगी।
आइए अब आपको बताते हैं कि इन खाली विभागों से आम जन जीवन पर कितना असर पड़ रहा है।
स्कूल शिक्षा : जो भी बच्चा बारहवीं में अच्छे नंबर लाएगा उसको आगे पढ़ाई के खर्च की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का ये बयान देखने सुनने में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन प्रदेश में 2,357 स्कूल बिना शिक्षकों के चल रहे हैं तो वहीं 8,000 से ज्यादा स्कूलों में सिर्फ एक ही शिक्षक पदस्थ हैं।
उच्च शिक्षा : प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में विषयवार एक शिक्षक औसतन 221 छात्रों को पढ़ा रहा है, जबकि यूजीसी के मापदंडों के अनुसार क्वालिटी एजुकेशन के लिए औसतन 25 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए। इस मामले में अन्य राज्य मध्यप्रदेश से बेहतर स्थिति में है। दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में शिक्षक और छात्र का अनुपात 1:60 तक है।
गृह विभाग : अपराध कम करने के लिए दो बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई लेकिन पुलिस की कमी से अपराधों में लगातार इजाफा हो रहा है। छह महीनों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम के बीच अपराध की तीनों गंभीर कैटेगरी यानी बॉडी ऑफेंस, प्रॉपर्टी ऑफेंस और वुमन ऑफेंस में इजाफा हुआ है। नाबालिग बच्चियों को अगवा किए जाने की वारदात भी जनवरी-मई 2021 के मुकाबले जनवरी-मई 2022 में बढ़ी हैं। भोपाल में ये इजाफा करीब 23 फीसदी है, जबकि इंदौर में 11 फीसदी तक हुआ है।
स्वास्थ्य विभाग : प्रदेश में तीन हजार से ज्यादा लोगों पर केवल एक डॉक्टर है। इससे प्रदेश में डॉक्टर्स की भारी संख्या में कमी नजर आती है। कई गांव-देहातों की स्थिति तो यह है कि केवल कंपाउंडर और नर्स के भरोसे ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चल रहे हैं। गांवों से आज भी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं. दूसरी ओर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और सिविल अस्पतालों में भी डॉक्टरों की भारी कमी है। इस समय मध्य प्रदेश की आबादी करीब आठ करोड़ आंकी जाती है। प्रदेश में तीन हजार से ज्यादा लोगों पर एक डॉक्टर की बात मेडिकल काउंसिल ने स्वीकार की है।
कृषि : मध्यप्रदेश को कृषि प्रधान माना जाता है। राजनीतिक फसल लहलहाने के पीछे भी किसानों का बड़ा हाथ है। कृषि की हालत भी प्रदेश में अच्छी नहीं है। जिलों में कृषि विस्तार अधिकारियों की भारी कमी है जिससे न तो कोई खेतों में जा रहा है और न ही कोई किसानों की समस्याओं से दो चार हो रहा है।