भोपाल (राज्य ब्यूरो)। एमडी-एमएस (स्नातकोत्तर) के दौरान जिला अस्पतालों में तीन माह का प्रशिक्षण निजी मेडिकल कालेजों के विद्यार्थियों के लिए भी अनिवार्य होगा। 2021 बैच से पीजी में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों पर यह नियम लागू होगा। जिला अस्पतालों में प्रशिक्षण के लिए ज्यादा विद्यार्थी होने पर कुछ को सौ बिस्तर से अधिक के सिविल अस्पतालों या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी भेजा जा सकेगा। राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने दो दिन पहले एक परिपत्र के माध्यम से यह स्पष्टीकरण जारी किया है। बता दें कि एनमएसी ने सितंबर 2020 में डिस्ट्रिक्ट रेसीडेंसी प्रोग्राम (डीआरपी) का प्रविधान कर दिया था, पर इसमें कुछ बिंदुओं पर भ्रम की स्थिति थी, जिसे स्पष्ट किया गया है। हालांकि, जूनियर डाक्टर इसका विरोध कर रहे हैं।
नई व्यवस्था से यह होगा फायदा
एमडी-एमएस द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों को प्रशिक्षण पर भेजने का लाभ मरीजों को भी मिलेगा। जिला अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी है। जूनियर डाक्टरों के रहने से ओपीडी, वार्ड, आपरेशन थियेटर और ट्रामा एवं आपातकालीन यूनिट में डाक्टरों की कमी दूर हो सकेगी। खासतौर पर जिस विषेज्ञता के जूनियर डाक्टर होंगे उसके मरीजों के लिए और सुविधाजनक हो जाएगी। एनएमसी ने यह भी साफ किया है प्रशिक्षण अवधि में विद्यार्थियों के लिए आवास और यातायात की व्यवस्था संबंधित जिला अस्पताल प्रबंधन को करनी होगी।
मप्र में जूनियर डॉक्टर्स कर रहे विरोध
यह भी कहा गया है कि हर जिला अस्पताल में इसके लिए एक समन्वयक बनाना होगा। किसी अस्पताल में उस विशेषज्ञता का चिकित्सक नहीं है तो प्रशिक्षण अवधि के लिए दूसरे जिला अस्पताल से किसी को समन्वयक के तौर पर पदस्थ करना होगा। हालांकि, मध्य प्रदेश में जूनियर डाक्टर्स एसोसिएशन इसका विरोध कर रहा है। उनका कहना है कि तीन माह की प्रशिक्षण अवधि को पीजी के बाद एक साल की अनिवार्य ग्रामीण सेवा का हिस्सा माना जाए।