प्रयागराज। इस साल, प्रयागराज के प्रमुख मूर्ति निर्माण केंद्र के कारीगर मूर्तियों की बढ़ती लागत और घटती मांग के कारण परेशान हैं। हालात यहां तक पहुंच गए हैं की पहले जहां शहर के #दुर्गा_पूजा आयोजक बड़े आकार की 100 मूर्तियों हाथों हाथ ले जाते थे वहीं अब 35 को भी बेचने के लाले पड़ रहे हैं। कोरोना महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद,आजकल कर्नलगंज इंटर कॉलेज के बंगाली कारीगरों को फिर से बांस, मिट्टी, रस्सियों, घास, लकड़ियों और अन्य वस्तुओं से देवी दुर्गा और अन्य की मूर्तियाँ बनाते देखा जा सकता है।
इस व्यस्तता के बावजूद, वे निराश हैं क्योंकि उन्हें मूर्तियों का सही मूल्य नहीं मिल रहा है, कारण कच्चा माल महंगा हो गया है और श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि हुई है। “पिछले दो वर्षों की तुलना में यह काफी बेहतर स्थिति है लेकिन कच्चे माल की बढ़ती कीमतों ने बजट को बिगाड़ दिया है। कोरोना से पहले हम 100 मूर्तियाँ बनाते थे और सभी बिक जाते थे लेकिन अब 35 को बेचना मुश्किल है जो हमने तैयार किया है,” अम्बा प्रतिमालय के कारीगर ने #प्रयागराज_राष्ट्रीय जजमेंट बात करते हुए कहा।कारीगरों के मुताबिक, पंडालों के लिए दुर्गा मूर्तियों की मांग में कमी आई है। इसके अलावा, पूजा आयोजकों ने मॉडेलर्स से मूर्तियों की कीमतें यथासंभव कम रखने का अनुरोध किया है।
आयोजक दावा कर रहे हैं कि उनके पास बजट कम है। "इसका प्रबंध करने का एक ही उपाय है की मूर्तियों के साइज को छोटा कर दो। वह कहते हैं उनके पास बजट नहीं है। ," वह बोले। अब घास, रस्सी, लकड़ी और क्ले मिट्टी के दाम कई गुना बढ़ गए हैं। जिसके कारण देवी दुर्गा, भगवान गणेश, कार्तिकेय, 'महिषासुर' आदि की कीमत 75 हजार से 1.15 लाख के आसपास है और यह शहर के पंडाल मालिकों के लिए बहुत महंगा है। कई आयोजक कह रहे हैं कि वे इतना भुगतान नहीं कर सकते। कुछ ने मॉडलर्स को कीमत कम रखने के लिए भी कहा। कार्यशाला में बनाई जा रही मूर्तियों में से ज्यादातर पंडाल पूजा और कुछ आवासीय परिसर में पूजा के लिए हैं।