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नवरात्रि के तीसरे दिन मांता चन्द्रघंण्टा स्वारूप का भक्तों ने किया पूजन

Wednesday, September 28, 2022

/ by Today Warta



राकेश केसरी

मां की हर बात निराली है आदि देबी गीतो से गुजायमान रहा वातावरण

कौशाम्बी। जिलें के कडाधाम स्थित मांता शीतला मंदिंर,मंझनपुर स्थित दुर्गा मंदिर,पश्चिमशरीरा स्थित झारखण्डी मांता मंदिर सहित अन्य देबी मंदिंरो व पूजा पंण्डाल में नवरात्र पर्व के तीसरेे दिन देबी भक्तों ने माँ चन्द्रघंण्ंटा स्वारूप की पूजा-अर्चना की। देबी पुराण के अनुसार हिन्दूस्तान के धरातल पर युगों से परम शक्ति ईश्वर के दर्शन की लालसा चली आ रही है। यहां समृद्ध परम्पराएं इस बात की गवाह हैं, कि यहाँ मानवता व धर्म की रक्षा हेतु ईश्वरीय शक्ति का किसी न किसी रूप में अवतार होता रहता है। हो भी क्यों न ? क्योंकि धरती में सुख समृद्धि बिना देव-देवी कृपा के नहीं हो सकती है। मानव जीवन भटक कर अंधकार में गुम सा हो जाएगा। कुटिल, दुष्ट,भयंकर राक्षसी प्रवृत्ति संसार में व्याप्त होकर धर्म व मानवता को हानि पहुंचाने हेतु सदैव तत्पर होने लगती है। दैत्यों के संहार व अनीत व अनाचार को हटाने हेतु ही माँ दुर्गा नव रूपों में प्रकट हुई है। जिसमें माँ दुर्गा के तृतीय स्वारूप को मां चंद्रघण्टा के नाम से जाना जाता है। मां श्रद्धालु भक्तों की भय पीड़ा व दुःखों को मिटाने वाली है। भक्त जनों के मनोरथ को पूर्ण करने वाली है। देवी के इस रूप की उत्पत्ति नवरात्रि के तीसरे दिन होती हैं। यह रूप सभी प्रकार की अनूठी वस्तुओं को देने वाला तथा कई प्रकार की विचित्र दिव्य ध्वनियों को प्रसारित व नियंत्रित करने वाला होता है। इनकी कृपा से व्यक्ति की घ्रांण शक्ति और दिव्य होती है। वह कई तरह की खुशबुओं का एक साथ आनन्द लेने में सक्ष्म हो जाता है। माँ दैत्यों का वध करके देव, दनुज, मनुजों के हितों की रक्षा करने वाली है। जिनके घण्टा में आह्ल्लादकारी चंद्रमा स्थिति हो उन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है। अर्थात् जिनके माथे पर अर्द्ध चंद्र शोभित हो रहा है। जिनकी कांति सुवर्ण रंग की है ऐसी नव दुर्गा के इस तृतीय प्रतिमा को चन्द्रघण्टा के नाम से ख्याति प्राप्त हुई हैं। यह दैत्यों का संहार भयानक घण्टे की नाद से करती है। यह माता दस भुजा धारी है। जिनके दाहिने हाथ में ऊपर से पद्म, वाण, धनुष, माला आदि शोभित हो रहे है। जिनके बायंे हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार, कमण्डल तथा युद्ध की मुद्रा शोभित हो रही है। माता सिंह में सवार होकर जगत के कल्याण हेतु दुष्ट दैत्यों को मारती हैं। माँ का यह रूप शत्रुओं को मारने हेतु सदैव तत्पर रहता है। शनिवार को जिले के सभी देबी मंदिरो में माता के तीसरे स्वारूप की पूजा अर्चना की गई।
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माता चंद्रघण्टा की कथा
माता चन्द्रघण्टा असुरों के विनाश हेतु माँ दुर्गा के तृतीय रूप में अवतरित होती है। जो भयंकर दैत्य सेनाओं का संहार करके देवताओं को उनका भाग दिलाती है। भक्तों को वांछित फल दिलाने वाली हैं। आप सम्पूर्ण जगत की पीड़ा का नाश करने वाली है। जिससे समस्त शात्रों का ज्ञान होता है, वह मेधा शक्ति आप ही हैं। दुर्गा भव सागर से उतारने वाली भी आप ही है। आपका मुख मंद मुस्कान से सुशोभित, निर्मल, पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करने वाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय है, तो भी उसे देखकर महिषासुर को क्रोध हुआ और सहसा उसने उस पर प्रहार कर दिया, यह बड़े आश्चर्य की बात है। कि जब देवी का वही मुख क्रोध से युक्त होने पर उदयकाल के चन्द्रमा की भांति लाल और तनी हुई भौहों के कारण विकराल हो उठा, तब उसे देखकर जो महिषासुर के प्राण तुरंत निकल गये, यह उससे भी बढ़कर आश्चर्य की बात है, क्योंकि क्रोध में भरे हुए यमराज को देखकर भला कौन जीवित रह सकता है। देवि! आप प्रसन्न हों। परमात्मस्वरूपा आपके प्रसन्न होने पर जगत् का अभ्युदय होता है और क्रोध में भर जाने पर आप तत्काल ही कितने कुलों का सर्वनाश कर डालती हैं, यह बात अभी अनुभव में आयी है, क्योंकि महिषासुर की यह विशाल सेना क्षण भर में आपके कोप से नष्ट हो गयी है। कहते है कि देवी चन्द्रघण्टा ने राक्षस समूहों का संहार करने के लिए जैसे ही धनुष की टंकार को धरा व गगन में गुजा दिया वैसे ही माँ के वाहन सिंह ने भी दहाड़ना आरम्भ कर दिया और माता फिर घण्टे के शब्द से उस ध्वनि को और बढ़ा दिया, जिससे धनुष की टंकार, सिंह की दहाड़ और घण्टे की ध्वनि से सम्पूर्ण दिशाएं गूँज उठी। उस भयंकर शब्द व अपने प्रताप से वह दैत्य समूहों का संहार कर विजयी हुई।
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सामाजिक सरोकारों का भान करा रहे दुर्गापूजा पंडाल
जिलें में चारों ओर दुर्गापूजा की धूम मची है। घंटे.घडियाल के साथ मइया के जयकारों से मंदिर व दुर्गापूजा पंडाल गुंजायमान हो रहे हैं। मां दुर्गा के दर्शन करने का उत्साह भी चरम पर है। गांव से लेकर शहर तक आदि शक्ति जगत जननी की भक्तिमय की गंगा में लोग नहा रहे हैं। चारों ओर बस दुर्गा पूजा ही दुर्गा पूजा हो रही है। आराधना के बीच सामाजिक सराकारों के प्रति भी लोगों को सचेत किया जा रहा है। पूजा.पंडालों में भक्तों को पर्यावरण संरक्षण से लेकर बेटी.बचाओ के प्रति जागरुक किया जा रहा है। पूजा.पंडालों में हवन.पूजन कर भक्तों को पर्यावरण को शुद्ध रखने का संदेश दिया जा रहा है। क्षेत्र के कई समाजसेवी पूजा पंडालों में पहुंचकर पौधरोपण करने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। साथ ही यह भी बताने में पीछे नहीं रहते हैं कि हवन.पूजन से पर्यावरण शुद्ध रहता है। सिराथू स्थित दुर्गा पूजा पंडाल में उन्होंने कहा कि वृक्ष ही धरा के भूषण हैं। जीवन को बढ़ाने के लिए पौधरोपण जरुरी है। कड़ा स्थित 51वीं शक्तिपीठ माता शीतला मंदिर के अध्यक्ष ने पूजा.पंडालों में पूजन.अर्चन व कथा के दौरान कन्या भ्रूण हत्या रोकने के प्रति लोगों को जागरुक किया। सिराथू के शमसाबाद गांव में माता का दरबार सजाया गया है। जल व पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को संदेश दिया जा रहा है। शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन माता चन्द्रघंण्टा की भक्तों ने पूजा.अर्चना की। मंदिरों में भोर होते ही भक्तों की कतार लग गई। पूजन.अर्चन कर भक्तों ने मन की मुरादें पूरी होने की मिन्नतें की।
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दुर्गामय हो गए हैं मां के मंदिर
शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन मंगलवार को मां अंबे के मंदिर की अलग ही छटा बिखेर रहे हैं। यहां सुबह.शाम जयकारों से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है। कड़ा स्थित 51वीं शक्तिपीठ माता शीतला मंदिर पर सुबह से ही पूजन.अर्चन का क्रम शुरु हुआ तो देर शाम तक चलता रहा। नवरात्र पर घंट.घडियाल की धुन से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है। मुख्यालय मंझनलपुर स्थित दुर्गा देबी मंदिर पर भी लोगों का तांता लगा है। जबकि मंदिर के आस.पास के क्षेत्रों को आकर्षक ढंग से सजाया गया है। देबी मां की पूजा के लिये सुबह से ही लोगों की लाइन लगी


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