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आइये जाने 58 साल के शिरीष फडतारे ने कूड़े से कैसे बनाई करोड़ों की कंपनी

Monday, September 12, 2022

/ by Today Warta

   


:वेस्ट प्लास्टिक से बनाते हैं डीजल जैसा आॅयल, कीमत सिर्फ 45 रुपए प्रति लीटर

नई दिल्ली। 2009 की बात है। हम दोनों पुणे के एक जंगल में घूम रहे थे। तभी एक हिरण पर नजर गई। वो छटपटा रहा था। उसे हमने अपनी आंखों के सामने तड़पकर मरते देखा। दरअसल, उसकी मौत प्लास्टिक खाने की वजह से हुई थी। इस घटना ने कई रात हमें सोने नहीं दिया। हमने तय किया कि इस प्लास्टिक का कुछ तो करना होगा। एक रोज हम दोनों एक होटल में खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। वेटर ने ग्लास में बर्फ लाकर दिया। बर्फ पिघल गई, तो हमने सोचा कि क्यों न प्लास्टिक को पिघलाकर कुछ किया जाए।

फिर हमने ऐसा फॉमूर्ला ईजाद किया कि आज वेस्ट प्लास्टिक यानी कूड़े से हर रोज 700 लीटर डीजल जैसा आॅयल बनाकर बेच रहे हैं। यह आॅयल इंडस्ट्रियल मशीनों के अलावा जनरेटर और बोट को आॅपरेट करने में काम आती है। इस इको फ्रेंडली स्टार्टअप से सालाना 2 करोड़ का बिजनेस है। ये बातें 58 साल के शिरीष फडतारे किसी जंगल में नहीं, पुणे स्थित अपना प्रोडक्शन यूनिट दिखाते हुए हमसे कह रहे हैं। 55 साल की मेधा ताडपत्रीकर शिरीष फडतारे की बिजनेस पार्टनर हैं। दोनों कॉलेज के दोस्त हैं। 'रुद्रा ब्लू प्लेनेट एनवायर्नमेंट सॉल्यूशन नाम से कंपनी चला रहे हैं।

55 साल की मेधा ताडपत्रीकर शिरीष फडतारे की बिजनेस पार्टनर हैं। दोनों कॉलेज के दोस्त हैं। 'रुद्रा ब्लू प्लेनेट एनवायर्नमेंट सॉल्यूशन नाम से कंपनी चला रहे हैं।

शिरीष की पुणे यूनिट में इस वक्त 20 लोग काम कर रहे हैं। कोई वेस्ट प्लास्टिक को साफ कर रहा है, तो कोई इसे प्रोसेस कर रहा। वो वेस्ट प्लास्टिक के ढेर को दिखाते हुए कहते हैं, जिसे लोग इधर-उधर फेंक देते हैं, कूड़े का पहाड़ खड़ा करते हैं, उससे हम आॅयल तैयार करते हैं। डिमांड इतनी कि सप्लाई कर पाना मुश्किल। शिरीष उन दिनों के बारे में बताते हैं जब वो इस पर एक्सपेरिमेंट कर रहे थे। कहते हैं, 'हम दोनों साइंस बैकग्राउंड से नहीं आते हैं। इसलिए कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है। मैं अकाउंटेंट था और मेधा ब्रांडिंग के प्रोफेशन से जुड़ी थी।' उन पुरानी बातों को याद कर शिरीष मुस्कुराने लगते हैं। कहते हैं, 'सबसे पहले तो अपने मैकेनिकल और केमिकल बैकग्राउंड के दोस्तों से मिलना शुरू किया था। हम और शिरीष उस जगह पर पहुंचते हैं, जहां बॉयलर के जरिए वेस्ट प्लास्टिक से आॅयल निकाला जा रहा है। कहते हैं, ह्यहम दोनों ने एक प्लांट लगाना तय किया। 10 लाख रुपए की लागत से 35 किलोग्राम का एक प्लांट लगाया। लगातार तीन साल तक एक्सपेरिमेंट करने के बाद वेस्ट से अच्छी क्वालिटी का आॅयल निकला। यह डीजल जैसा था। जिसके बाद 20 लाख रुपए की लागत से 300 किलोग्राम का एक और प्लांट लगाया।' शिरीष जिस वेस्ट से बने आॅयल को हमें दिखा रहे हैं, उसमें और डीजल में अंतर कर पाना मुश्किल है। वो कहते हैं, 'आपको ही नहीं, इंडस्ट्री के लोगों को भी यह डीजल जैसा ही दिखाई देता है। हो भी क्यों न, काम भी उसी तरह से करता है और सस्ता है, ये एक्स्ट्रा बेनिफिट। 'शिरीष कहते हैं, 'हमारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था। घर चलाने के लिए हम दोनों पहले से बिजनेस कर रहे थे। जब हमने वेस्ट से आॅयल बनाने का प्रोसेस शुरू किया तो लोग पागल समझते थे। कहते थे, ये पागल कूड़ा से आॅयल बनाएगा। 

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