ललितपुर। भगवान विश्वकर्मा जयंती पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि आदमी श्रम करने के लिए नहीं जीता, बल्कि मनुष्य की भांति जीने के लिए श्रम करता है। मानव प्रकृति की इसी प्रवृत्ति में वह दिव्यता, गरिमा होती है, जो उसे जानवर से पृथक कर देती है। प्रत्येक मनुष्य श्रमिक है। धरती, आसमान, आग, पानी तथा हवा उसकी सामग्री है जिसके बल पर वह अपने और न्याय आधारित आदर्शों के अनुरूप पृथ्वी पर बेहतर से भी बेहतर मनुष्योचित जीवन ढालते रहने के लिए सतत सचेष्ट रहता है। इसलिए हमें प्रत्येक श्रमजीवी और बुद्धिजीवी मनुष्य में भगवान विश्वकर्मा के दर्शन करना चाहिए। संसार भर के श्रमजीवी अन्नदाताओं और शिल्पकारों को श्रम का पूरा- पूरा फल नहीं मिल पाता है। बीच में ही वह यहां वहां ठिठक जाता है यही आज के युग की बिडम्बना है। ठीक है कि बड़े से बड़ा शिल्पकार मकड़ी के आगे नतमस्तक हो जाता है क्योंकि वह उसकी तरह जाला नहीं बना सकता है और न ही बया पक्षी की तरह घोंसला या मधुमक्खी की छत्ता नही बना सकता? परंतु घटिया से घटिया शिल्पकार जब मेज बनाता है, तो बनाने से पूर्व वह नापतोल का सारा नक्शा अपने दिमाग में बना लेता है। यह वरदान प्रकृति ने सिर्फ चेतना सम्पन्न मानव को ही दिया है। इसलिए मनुष्य से बढ़कर कोई और नहीं। बहुसंख्यक श्रमिक ही इस धरती पर नूतन रामराज्य लाने में निश्चित ही एक न एक दिन समर्थ होंगे।