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यहां बाणासुर भगवान शंकर की करते थे तप वनगमन के समय भगवान राम भी किए थे शिवजी का अभिषेक

Wednesday, September 28, 2022

/ by Today Warta





संजय धर द्विवेदी

:शासन प्रसाशन की उपेक्षा का शिकार है बाणासुर की तपस्थली,ऋषियन

:बाणासुर के मा बरहा, के ही नाम पड़ा गांव का नाम बरहा कोटरा

 लालापुर प्रयागराज से दक्षिण पश्चिम की सीमा से सटे गांव बरहा कोटरा की पहाड़ी पर भगवान शिव का मंदिर है, इसे देवताओं की साधना स्थली माना जाता है। इस स्थान पर ही पाताल नरेश राजा बलि के पुत्र बाणासुर की तपस्थली भी है।यही पर बाणासुर भगवान शिव की तप किया था । और राम वनगमन के समय भगवान राम ने रुक कर शिव की पूजा अर्चना कर अभिषेक किए थे।कई ऋषि भी यहां शिव का तप किया करते थे।तभी से यह स्थान ऋषियन के नाम से विख्यात है। जहां विशाल शिव मंदिर का अवशेष आज भी देखने को मिलता है।यह स्थल पुरात्तव विभाग द्वारा संरक्षित है।लेकिन विकास न होने से लोगों में काफी निरासा है ।

किवदंती  है कि बाणासुर की मा बरहा के नाम पर गांव का नाम बरहा कोटरा पड़ा। पुरातत्व विभाग ने यहा एक बोर्ड लगाकर कोरम पूरा कर लिया।,किसी भी अधिकारी ने इस ओर कभी भी ध्यान नहीं दिया। प्रख्यात शिव मंदिर के ध्वंसावशेष यहां  पर बिखरे पड़े दिखाई देते हैं। बाणासुर के दुर्ग के पास बने बांध के ध्वंसावशेषों को पुरातत्व विभाग सिंधु घाटी की सभ्यता के समकालीन बताते हैं। ऐसी मान्यता है कि बाणासुर ने इस पहाड़ी पर तपस्या की थी। पहाड़ी पर आदिकाल के मानव निर्मित शैल चित्रो के साथ ही बौद्ध मूर्तियों के भग्नावशेष भी देखने योग्य हैं। इस पौराणिक स्थल पर आज भी दो प्राकृतिक गुफाएं हैं, एक गुफा में पांच  अद्वितीय शिवलिंग विराजमान हैं। इस गुफा में शिवलिंग को स्पर्श करती अविरल जल धारा बहती रहती है ।जबकि दूसरी गुफा को बंद कर दिया गया है। क्षेत्रीय लोगों ने बताया कि ऋषियन धाम में पाताल नरेश बाणासुर के अतिरिक्त तमाम ऋषियों ने तपस्या की थी।इसलिए भगवान राम सीता लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए चित्रकूट जाते समय यहां  रुके थे और ऋषियों का आशीर्वाद लिया था। ऋषियन धाम में आज भी पुराने गौरव को दोहराते सात मंदिरो के अवशेष मौजूद हैं। यहां  शिव मंदिर, गणेश मंदिर, दुर्गा मंदिर, सूर्य मन्दिर में सात घोड़ों का रथ भी बना हुआ है ।गुफा के बाहर यक्ष की मूर्तियां बनी हुई हैं। मान्यता के अनुसार ऋषियन धाम में यक्ष गण सपरिवार आते थे। इसी तरह पीपल के पेड़ पर अजीब प्रकार की आकृतियां बनी हैं, जिन्हें क्षेत्र के ग्रामीण देवी देवताओं की आकृति मानते हैं।

दिन में रहते है भक्तों की भीड़ दिन डूबते ही पसर जाता है सन्नाटा

लोगो का मानना है कि इस प्राचीन मंदिर में दिन में तो भक्तों की भीड़ रहती है लेकिन सूरज ढलते ही यहां सन्नाटा पसर जाता है ।लोगों के ऐसा मानना है कि रात के समय यहां भगवान शिव अपने गणों के साथ पहुंचकर नृत्य करते है ।लोगो को दूर दूर तक यहां की डमरू आदि की आवाज सुनाई देती है ।जिसने भी रात में रुकने का प्रयास किया वह भगवान शिव के द्वारा दंडित किया गया ।जिससे लोग सूरज ढलने से पहले ही यहां से निकल लेते हैं।

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