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कमलनाथ ने उमा के गढ़ से भरी चुनावी हूंकार

Thursday, October 20, 2022

/ by Today Warta



पंकज पाराशर 

कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए 29 विधायकों को हराने का प्लान

छतरपुर। मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने अगले साल यानि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस अब उन विधायकों के इलाकों पर फोकस करेगी, जिनके कारण सत्ता गंवानी पड़ी थी। इस फेरबदल में कांग्रेस को अपनों से ही चोट मिली थी। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इसके लिए खास रणनीति बनाई है। इसकी शुरुआत गुरुवार को बड़ामलहरा से होगी। कमलनाथ बड़ामलहरा में मंड़लम्-सेक्टर और बूथ कमेटियों की बैठक लेंगे। इसके बाद एक जनसभा को भी संबोधित करेंगे। बड़ामलहरा उमा भारती का गढ़ माना जाता है। 2003 में जब बीजेपी की 10 साल बाद सरकार बनी तब उमा बड़ामलहरा से ही विधायक बनीं थीं। यहीं से उमा के बड़े भाई स्वामी लोधी भी विधायक रह चुके हैं। उमा की कट्‌टर समर्थक रेखा यादव भी 2008 में उमा की पार्टी भारतीय जनशक्ति पार्टी से विधायक बनीं थीं। लोधी समाज बहुल बड़ामलहरा विधानसभा से साल 2018 में कांग्रेस के टिकट पर प्रद्युम्न सिंह लोधी चुनाव जीते थे हालांकि वे मप्र में सत्ता परिवर्तन के बाद बीजेपी में शामिल हो गए थे। आज यहीं से कमलनाथ कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले विधायकों को अगले चुनाव में पटखनी देने का शंखनाद करेंगे। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए 22 विधायकों के बाद से अब तक कुल 29 विधायक बीजेपी जॉइन कर चुके हैं। कमलनाथ विशेषकर दलबदल कर धोखा देने वाले 26 विधायकों की सीटों को जीतने के लिए खास रणनीति बना रहे हैं।

इन विधानसभाओं पर इसलिए फोकस

कांग्रेस नेताओं की मानें, तो जिन विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा, उनमें से अधिकांश विधानसभाएं ऐसी हैं, जहां लंबे समय बाद कांग्रेस को जीत मिली थी। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इन विधानसभाओं में वोटर्स कांग्रेस के पक्ष में है। लिहाजा, इन सीटों को लेकर अलग से रणनीति बनाई जा रही है। इन क्षेत्रों में कांग्रेस के बूथ लेवल वर्कर्स से लेकर मंडलम्-सेक्टर के पदाधिकारियों से कमलनाथ सीधे चर्चा करेंगे, ताकि स्थानीय परिस्थितियाें की जानकारी मिल सके। दलबदल के बाद कांग्रेस स्थानीय विधायकों के प्रति जनता में नाराजगी को भी भुनाने में लगी है।

सिंधिया के साथ गए थे 22 विधायक

मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 विधायकों के भाजपा में शामिल होने से कमलनाथ सरकार गिर गई थी। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के वक्त कमलनाथ की आंखों से आंसू आ गए थे। हालांकि सरकार जाने के बाद से कमलनाथ के मप्र छोड़ने की चर्चाएं चलीं, लेकिन नाथ ने साफ कर दिया कि वे मप्र में ही रहेंगे। अब मप्र कांग्रेस के संगठन को विस्तार करने में जुटे हैं।

इन 22 विधायकों ने सिंधिया के साथ छोड़ी थी कांग्रेस

1- प्रदुम्न सिंह तोमर (ग्वालियर) 2- रघुराज कंसाना (मुरैना) 3- कमलेश जाटव (अम्बाह) 4- रक्षा सरोनिया (भाण्डेर) 5- जजपाल सिंह जज्जी (अशोकनगर) 6- इमरती देवी (ड़बरा) 7- डॉ. प्रभुराम चौधरी (सांची) 8- तुलसी सिलावट (सांवेर) 9- सुरेश धाकड़ (पोहरी) 10- महेंद्र सिंह सिसोदिया (बमोरी) 11- ओपीएस भदौरिया (मेहगांव) 12- रणवीर जाटव (गोहद) 13- गिर्राज दंडोतिया (दिमनी) 14- जसवंत जाटव (करैरा) 15- गोविंद सिंह राजपूत (सुरखी) 16- हरदीप सिंह डंग (सुवासरा) 17- मुन्ना लाल गोयल (ग्वालियर पूर्व) 18- बृजेन्द्र सिंह यादव (मुंगावली) 19- राज्यवर्द्धन सिंह दत्तीगांव (बदनावर) 20- बिसाहू लाल सिंह (अनूपपुर) 21- ऐदल सिंह कंसाना (सुमावली) 22- मनोज चौधरी (हाटपिपल्या)। मार्च 2020 में कांग्रेस के 22 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी जॉइन कर ली थी। इसी उलटफेर की वजह से कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। अब नाथ ने इनकी विधानसभाओं को जीतने का प्लान बनाया है।

सत्ता परिवर्तन के बाद भी विधायकों ने छोड़ी पार्टी

मार्च 2020 में मप्र में हुए उलटफेर के बाद प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई। 22 विधायकों के बाद नेपानगर विधायक सुमित्रा देवी कास्डेकर, बड़वाह विधायक सचिन बिरला, बड़ामलहरा विधायक​​​​​ प्रद्धुम्न लोधी, दमोह विधायक राहुल लोधी ने भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। हालांकि इन विधायकों के इस्तीफा देने के बाद हुए उपचुनाव में भी यहां भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीत गए थे।

कमलनाथ के समर्थक सपा-बसपा विधायकों ने भी थामा भाजपा का दामन

साल 2018 में कमलनाथ सरकार को समर्थन देने वाले सपा और बसपा के विधायकों ने भी हाल ही में बीजेपी का दामन थाम लिया। भिंड से बसपा विधायक संजीव सिंह कुशवाह (संजू) और छतरपुर जिले की बिजावर से सपा विधायक राजेश शुक्ला (बबलू) और सुसनेर के निर्दलीय विधायक राणा विक्रम सिंह ने भाजपा जॉइन कर ली। इन तीनों विधायकों की पारिवारिक और राजनैतिक पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है। राजेश शुक्ला के बड़े भाई जगदीश शुक्ला छतरपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं। संजीव सिंह कुशवाह के पिता डॉ.रामलखन सिंह कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं। वहीं राणा विक्रम सिंह भी पुराने कांग्रेसी हैं। चार महीने पहले जून में सपा विधायक राजेश शुक्ला, बसपा विधायक संजीव सिंह और निर्दलीय एमएलए राणा विक्रम सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया था।

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