कटनी।कटनी विकास प्राधिकरण की ओर से झिंझरी-कछगवां की जमीन को विकास के नाम पर अधिगृहण किए जाने की खबर से समूचे कटनी क्षेत्र में आक्रोश की लहर देखने को मिल रही है। गुरुवार को तमाम लोगों ने एक मीटिंग कर प्रदेश सरकार के इस निर्णय के खिलाफ बिगुल फूंकने का ऐलान कर दिया है। केडीए ने झिंझरी पीसी नं. 35 की 119 हेक्टेयर ( 300 एकड़ ) निजी जमीन पर विकास कार्य करने की इच्छा व्यक्त की है। खसरा नंबर 814 /1 ८१४/१ से 1473 / 2 तक के इस रकबे में होटल और फैक्ट्री तो चल रही रही है, 217 गरीबी सीमति किसान भी अपना पेट पाल रहे है। छह सौ कच्चे मकान वाले मजदूर जिंदगी जी रहे है। इसी तरह कछगवां में खसरा नंबर 560 से 792 /2 तक की 170 एकड़ जमीन में दो सौ किसान का परिवार और मजदूरों का जीवन टिका है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये सारी जमीन शासन अधिग्रहित करने के लिए राजपत्र में सूचना एक माह के भीतर प्रकाशित कर देगा। अपनी रोजी रोटी गंवाने की आशंका से घबराए हुए नागरिकों ने होटल टीसीएस में एक सभा की और सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि इस आशयित सूचना के विरोध में सभी प्रभावित भू-स्वामी आपत्ति लगाएंगे और प्रदेश के मुख्यमंत्री से भी गुहार लगाएंगे। सभा में वक्ताओं ने कहा कि वास्तव में नोटिफिकेशन होने के पहले यदि शासन जनहित में अपना आशय रद्द कर दे तो हजारों परिवारों की तबाही बच सकती है। मगर नोटिफिकेशन होने के बाद तो न्यायपालिका से भी कोई राहत नहीं मिलती। दिखावे के लिए अधिग्रहण से जुड़ी आपत्तियां-दावे बुलाए जाते हैं मगर उनका निराकरण आपत्ति करने वालों के पक्ष में आज तक नहीं हुआ।
होटल टीसीएस में आयोजित सभा में यह भी तर्क दिया गया कि शसन ने बरही के बुजबुजा में वेल्स्पन की स्थापना के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहीत कर ली और नियमानुसार पांच साल में कोई इकाई नहीं लगी। फिर भी शासन ने किसानों की जमीन नहीं लौटाई। लोग परेशान हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। आज वह जमीन एक के बाद दूसरे कारपोरेट घरानों के कब्जे में है।
पहले भी हो चुकी है जनहित की उपेक्षा
सभा में वक्ताओं ने यह भी कहा कि कटनी में सन 1988 के आसपास निजी भूमि का बड़ा रकबा जनहित विकास के नाम पर अधिग्रहण किया लेकिन 35 वर्षों से जमीन की झाडिय़ां तक नहीं साफ की गई। आज भी भूमि स्वामी अपनी जमीन पाने के लिए फड़-फड़ाते हुए मर रहे हैं। उन्हें सिर्फ पेशियां मिल रही हैं। केडीए ने पहले भी शाला भवन का दोषपूर्ण अधिग्रहण किया था। यह भी बताया गया है कि केडीए पूर्व में द्वारका भवन के पीछे बने रघुनाथ गंज शाला भवन को विकास के नाम पर अधिग्रहण करने की तैयारी की थी। जिस पर शाला भूमि दान करने वालों के वारिसदानों ने आपत्ति लगाई कि दान पत्र का उद्देश्य बदलने का हक केडीए को नहीं है। लेकिन उनकी आपत्तियोंं को रद्दी में फेंका गया। तब मामला हाईकोर्ट पहुंचा और हिंदू लॉ के प्रावधानों पर सुपरसीड नहीं होने वाले बेहूदे अधिग्रहण पर रोक लगी।
15 सदस्यीय संघर्ष समिति गठित
सभा के दौरान अपनी जमीन को बचाने अपने, परिवार का भविष्य बचाने के लिए 15 सदस्यीय टास्क फोर्स समिति का गठन बैठक में किया गया। समिति में पवन मित्तल, सुधीर मिश्रा, सुरेश सोनी, आलोक गोयनका, सुशील मोटवानी, अजीत आसरानी, डॉ. प्रेम जसूजा , रवि बजाज, हीरालाल टहलरामानी, केदार बिचपुरिया, राजू माखीजा, आनंद पांडे, अनिल केवलानी आदि शमिल हैं।