संजय धर द्विवेदी
10 करोड़ के मानहानि का मामला
लालापुर, प्रयागराज । कटनी की महर्षि महेश योगी वैदिक यूनिवर्सिटी के मुखिया गिरीश वर्मा का प्रकरण कोर्ट ने खारिज कर दिया है। जानकारी के अनुसार गिरीश वर्मा ने अपने ऊपर लगे आरोपों को संस्था की क्षति बताकर अपने ही पूर्व कर्मचारी पर 10 करोड़ की मानहानि का केस लगाया था जिसे कोर्ट ने खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि वादी-प्रतिवादी दोनों का खर्च वहन करें। बता दें कि केस दायर करने वाली वादी संस्था कटनी-जबलपुर की महर्षि महेश योगी वैदिक यूनिवर्सिटी के मुखिया गिरीश वर्मा पर 2013 में लगे शारीरिक शौषण के आरोपों को लेकर यूनिवर्सिटी प्रबंधन द्वारा भोपाल जिला अदालत में दायर मानहानि का प्रकरण कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह केस खारिज करते हुए आदेश में यह भी कहा कि वादी संस्था ही इस प्रकरण का खर्च वहन करें और प्रतिवादीगण (राजेश शर्मा, रेणु शर्मा) का कोर्ट खर्च भी वह वहन करें। दरअसल, रेणु शर्मा महर्षि शिक्षा संस्थान द्वारा संचालित महर्षि विद्या मंदिर स्कूल, भोपाल में नौकरी करती थी और राजेश शर्मा प्रारंभ से गिरीश वर्मा द्वारा स्वयं की संचालित कंपनियों में गिरीश वर्मा की इच्छा अनुसार कार्यरत थे, और वर्ष 1989 से गिरीश वर्मा के निजी सचिव की हैसियत से 27 वर्षों तक कार्य करते रहे हैं, रेनू शर्मा ने 2013 में गिरीश वर्मा पर शारीरिक शौषण का आरोप लगाया था। यह प्रकरण हाई कोर्ट में विचाराधीन है और गिरीश वर्मा उक्त प्रकरण मैं हाई कोर्ट जबलपुर द्वारा दी गई जमानत पर हैं। गिरीश वर्मा पर लगे व्यक्तिगत लांछन, आरोपों और शारीरिक शौषण के आरोपों को गिरीश वर्मा ने खुद को महर्षि महेश योगी वैदिक यूनिवर्सिटी मानकर संस्था की क्षति बताया और कोर्ट में मानहानि का केस दायर दिया। गिरीश वर्मा की तरफ से यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार अरविंद सिंह राजपूत ने दायर मानहानि केस में मांग की है, कि रेणु-राजेश शर्मा के आरोपों से संस्था की छवि धूमिल हुई है और संस्था का करीब 10 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान हुआ है। कोर्ट में यह भी प्रस्तुत किया गया कि संस्था में वेद, उपनिषद, दर्शन, न्याय वेदांत, इतिहास, पुराण, आयुर्वेद, वेद ज्ञान आदि में शिक्षा दी जाती है अत: संस्था के किसी भी डायरेक्टर, चांसलर अथवा मुखिया के खिलाफ कोई भी असत्य आरोप मानहानि योग्य होकर संस्था की हानि है। चूंकि आरोप लगाने वाले दोनों रेणु-राजेश शर्मा को संस्था से नौकरी से निकाल दिया गया, इसलिए उन्होंने संस्था के मुखिया गिरीश वर्मा पर असत्य आरोप लगाकर संस्था की मानहानि की है। इनके यौन उत्पीडऩ संबंधी आरोपों से संस्था की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। इसे कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह आरोप व्यक्तिगत है, न कि संस्था पर। जानकारों का तर्क है कि गिरीश वर्मा ने खुद पर लगे आरोपों को संस्थागत करार देकर कोर्ट में मानहानि का दावा पेश किया था, जो कोर्ट में प्रमाणित नहीं हो पाया है। इस मामले में 10 साल तक संस्था ने केस लड़ा जिसमेंदिलचस्प बात तो यह है कि गिरीश वर्मा ने खुद को संस्था मानकर संस्था की तरफ से जो केस कोर्ट में दायर करवाया था वह 10 साल तक कोर्ट में चला। 2013 में केस दायर किया गया था और 2022 में इस पर निर्णय आया। दस करोड़ रुपए की मानहानि का केस किया था, जिसके बदले कोर्ट में भी कोर्ट फीस के पैसे संस्था के खाते से जमा की गई, जबकि यह प्रकरण गिरीश वर्मा का व्यक्तिगत प्रकरण था। साथ ही एक दशक तक केस लडऩे के दौरान भी संस्था ने खर्च किया। वहीं, आरोप लगाने वाले रेणु-राजेश का भी दस साल तक धन और समय जाया हुआ और अभी भी रेणु शर्मा का प्रकरण हाई कोर्ट में विचाराधीन है। बताया जा रहा है कि दोनों पति-पत्नी को दस साल तक इस मानहानि संबंधी प्रकरण के तहत तंग किया गया जो कोर्ट में टिक ही नहीं पाया।