राकेश केसरी
कौशाम्बी। न अदालत के आदेश की चिंता न हरियाली से मतलब। मतलब है तो सिर्फ जमीन को वीरान कर पर्यावरण को दूषित करके अपनी जेब भरने से। इसमें व्यवसाई से लेकर पुलिस व वन विभाग तक भी मिले हुए हैं। नतीजा यह है कि जहां बाग आबाद थी,वहीं की जमीन वीरान हो गई है। बात हो रही है अवैध ढंग से संचालित आरा मशीनों व हरे पेड़ों के कटान की। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने धड़ल्ले से चलाई जा रही अवैध आरा मशीनों को बंद करने का फरमान जारी किया तो प्रशासन ने पालन में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रशासनिक सख्ती से कुकुरमुत्ते की तरह जगह.जगह उगी आरा मशीनों के पहिए उखड़ गए। साथ ही लकड़ी ठेकेदारों व आरा मशीन मालिकों में हड़कंप मच गया। कुछ दिन बाद लकड़ी के अवैध कारोबारी व आरा मशीन मालिक इस धंधे के लिए नया तरीका ढूंढ निकाला। अब दिन में मशीनों के पहिए गायब रहते हैं और रात के अंधेरे में धड़ल्ले से आरा मशीनें चलती हैं। सिराथू सर्किल में आधा दर्जन मशीनों का ही लाइसेंस है,जबकि क्षेत्र के विभिन्न बाजारों में अवैध आरा मशीनों के संचालन को देखा जा सकता है। वहीं हरे पेड़ों को काटने के लिए वन विभाग से अनुमति जरूरी है,परंतु हजार में एक को छोड़ दिया जाए तो शेष बिना विभाग की अनुमति के ही काट दिए जा रहे हैं। डीएफओ कहना हैं कि अवैध कारोबारियों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई की जाएगी।