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महाशिवरात्रि पर्व विशेष: भारत की अटूट एकता के आधार हैं देवों के देव शिव

Friday, February 17, 2023

/ by Today Warta



इन्द्रपाल सिंह'प्रिइन्द्र

ललितपुर। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि तुलसीदास जी अपने गुरु को शंकर रूपिणं के रूप में स्मरण करते हैं। मानस के बालकाण्ड के प्रथम भाग में भगवती उमा और महादेव शिव के विवाह और सम्मिलन का वर्णन करते हैं और उत्तरार्द्ध में जानकी जी और भगवान राम के विवाह का। जीव के हृदय में पहले शिव भक्ति का आधार परम आवश्यक मानकर, तत्पश्चात राम -सीता की भक्ति की सिद्धि। क्योंकि वे पार्वती और शंकर को श्रद्धा और विश्वास का स्वरूप मानते हैं। ज्ञान की पूर्णता ही श्रद्धा और विश्वास है, अन्यथा संशय। शंकर जी संशय का समाधान करते हुए समझाते हैं मैं अशिव वेश धारण करके पार्वतीजी की माँ मैना को भयभीत नहीं करना चाहता अपितु निर्भय बनाना चाहता हूँ। सर्प भले ही काल का प्रतीक है काल व्याल कराल भूषण धरैं। जो काल धरैं जो काल, समस्त सृष्टि को खा जाता है, उस काल को भी उस दूल्हे ने अपना आभूषण बनाया है। यह सोचकर पार्वतीजी की माँ बाद में बड़ी प्रसन्न हुईं। इसके पहले उनकी चूक थी कि उन्होंने काल यानि सर्प को देखा तो भयभीत हो उठीं। परंतु कालजई शंकर को देखा तो तुरंत भयमुक्त होकर गौरव और आनंद में झूम उठीं। शिवत्व का तात्पर्य है? बम भोला नाथ। स्वयं विष पीकर दूसरों को अमृत बाँटना। अणु-अणु, कण-कण को शिवोहम-शिवमय समझना।अपने देश का नाम भारत है जो व्यक्तिवाची न होकर भाववाचक है। दुनियाँ के लिए हमारी ज्ञान- भरण की जिम्मेदारी है। शैव दर्शन से प्रेरित होकर हमने अद्वैत दर्शन की जो विलक्षण विचारधारा दुनियाँ को दी है उसी कारण हम सिर्फ मनुष्यों में ही शिवोहम के दर्शन नहीं करते, बल्कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी यह कुछ क्या है? जो सदियां बीत जाने पर भी अभी तक मानव एकता को एक सूत्र में बाँधे हुए है। वस्तुत: यह जो एकता है, वही शिवतत्त्व में गतिमान है। देवाधिदेव भूत पिशाच प्रेतों से घिरे रहकर, भक्तों को देवत्व प्रदान करते हैं। स्वयं अकुल पर सबको एक मानवकुल में रखने वाले, खुद अगेह पर सबके गेह की चिंता। स्वयं दिगंबर पर सबके वस्त्रों के लिए तत्पर। वेश अशिव किन्तु स्वयं शिव। संसार जब असुर अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर उठा तो उन्होंने त्रिपुरासुर का संहार किया। पार्वती ने उन्मत्त धूर्जटी को प्रसन्न करने के लिए जो सुकुमार नृत्य किया, वही लास्य कहलाया। आज देश जिन बातों पर गर्व करता है वे सभी महादेव से जुड़े हैं। शिव ने सती के शव को लेकर तांडव किया, उसके परिणामस्वरूप देश का चप्पा-चप्पा एकता के सूत्र में बंध गया। वह शव -खंड-खंड होकर सारे देश में गिरा और चौरासी शक्तिपीठ बने। प्रेम, समर्पण और साहचर्य तथा नर -नारी समभाव की ऐसी मिशाल दुनियाँ में बेजोड़ है। गोस्वामी तुलसीदासजी का मानना है कि शंकर भगति बिना नर, भगति न पावहु मोरि अर्थात-भगवान राम की भक्ति शंकर की भक्ति के बिना सम्भव नहीं है। काल से पहले कालजयी को देखो, हम सभी सहज ही अमृतपान कर सकेंगे।

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