देश

national

बढ़ती जनसंख्या की खाध सुरक्षा हेतु मृदा का संरक्षण नितांत आवश्यक : डा.दीक्षित

Saturday, March 25, 2023

/ by Today Warta



इन्द्रपाल सिंह'प्रिइन्द्र

मृदा संरक्षण हेतु प्राकृतिक खेती ही एक विकल्प : डा.राजीव निरंजन

ललितपुर। नेहरू महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेवा योजना की इकाई चतुर्थ के संचालित सात दिवसीय विशेष शिविर के पांचवे दिन प्राचार्य प्रो.राकेश नारायण द्विवेदी के निर्देशन में स्वयंसेवकों द्वारा टपरियान पनारी मलिन बस्ती में घर घर जाकर औपचारिक शिक्षा नियमित रोजगार विषय पर सर्वेक्षण किया गया। कार्यक्रम अधिकारी डा.राजीव निरंजन  के नेतृत्व में एवं महाविद्यालय के मनीष वर्मा के साथ स्वयंसेवकों ने टपरियन पनारी मलिन बस्ती में घर घर जाकर लोगों से उनके परिवार में 15 से 29 वर्ष की आयु के बीच में यदि कोई सदस्य औपचारिक शिक्षा एवं नियमित रोजगार में नहीं है तो उनका डाटा और यदि कोई सदस्य 15 से 29 वर्ष की आयु में औपचारिक शिक्षा और नियमित रोजगार में है तो उनकी सारी जानकारी संग्रहित की। दोपहर के बाद मृदा संरक्षण विषय पर आयोजित बौद्धिक सत्र में महाविद्यालय की अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो.आशा साहू में स्वयंसेवको को मृदा के संरक्षण से होने वाले आर्थिक महत्व के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यदि मृदा स्वस्थ होगी तो फसल की पैदावार भी अच्छी होगी जिससे किसान आर्थिक रूप से मजबूत होगा। इसलिये मृदा को संरक्षित करना अतिआवश्यक है। महाविद्यालय के कृषि विभागाध्यक्ष डा.एच.सी.दीक्षित ने संबोधित करते हुए कहा कि बढ़ती हुई आबादी को भोजन एवं पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सर्वप्रथम मृदा के संरक्षण की नितान्त आवश्यकता है। मृदा सभी फसलों (अनाज, फल, सब्जी, दाल, औषधि वाली फसलों) के उत्पादन का प्रमुख आधार है। सभी फसलें मृदा में उगाई जाती है बिना मृदा के कोई फसल उत्पादन की संभावना नहीं है। ऐसी दशा में प्रथम आवश्यकता मृदा को भौतिक रूप से ठीक बनाए रखना है मृदा का क्षरण विभिन्न कारकों से होता है जैसे वायु एवं जल द्वारा मृदा का छरण अथवा कटाव एवं अन्य कई भौतिक कारकों द्वारा हो रहे मृदा की क्षरण का संरक्षण आवश्यक है। दूसरे क्रम में मृदा को रासायनिक रूप से भी संरक्षण करने की आवश्यकता है मृदा सभी पौधों को भौतिक सहारा तो प्रदान करती ही है, साथ ही साथ मृदा सभी पौधों को पोषक तत्व भी उपलब्ध कराती है सभी पौधों को उत्पादन हेतु बहुत से पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है जिनकी आपूर्ति मृदा ही करती है। मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों की उचित मात्रा बनी रहे यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पोषक तत्वों का क्षरण ना होने पाए और किसी भी तरह से पोषक तत्वों की हानि हो तो उन पोषक तत्वों की मात्रा की आपूर्ति की जाए। पोषक तत्वों के क्षरण रोकने हेतु फसल चक्र को अपनाना, कार्बनिक खाद, वर्मी कंपोस्ट आदि का प्रयोग आवश्यक है। कार्यक्रम अधिकारी डा.राजीव निरंजन ने बताया कि मृदा को रासायनिक खादों से होने बाले दुष्प्रभाव से बचाने और उसको स्वस्थ रखेंने के लिए हमे प्राकृतिक खेती करने की आवश्यकता है। प्राकृतिक खेती में किसानो को अपने खेतों में बिना कोई रासायनिक तत्व डाले खेती करने है। खेत मे गोवर की खाद, पेड़ पौधे के पत्ते, गाय के मूत्र और नीम से बनी कीटनाशकों का प्रयोग करना चाहिए है। जब मृदा स्वस्थ होगी तो हम स्वस्थ होंगे। कृषि प्रवक्ता मनीष वर्मा ने कहा कि भूसंरक्षण में हमें मिट्टी की उपजाऊ शक्ति व पोषक तत्वों को सुरक्षित रखने से तात्पर्य है। इस अवसर पर आदित्य साहू, धु्रव किलेदार, रवि, जगभान, स्वयंसेवक अमन, आशीष, अनस, अजय, कुलभूषण, अनुज, मनीष, नंदकिशोर, हर्ष, राहुल, अभिमन्यु, विजय, रूपेंद्र, पंकज, रोहित, अभिषेक, आलोक, अलंकृत, अमित, ऋषि मिश्रा, नितेन्द्र, हिमाचल राजा, राजा बाबू, गौरीशंकर, हरगोविंद, नरेश, मोहन, महेंद्र, रूपेश,  शैलेन्द्र, शुभम, सुरेंद्र, राहुल, आदित्य, अभय आदि उपस्थित रहे। शिविर में गोष्ठी का संचालन स्वयंसेवक रोहित अहिरवार ने किया। अंत में आभार स्वयंसेवक नरेश ने किया।

भूसंग्रक्षण के उपाय

अधिक से अधिक पेड लगाना चाहिये। खनन करने पर रोक लगाना चाहिये। अति पशुचरण नही कराना चाहिये। जैविक खेती पर जोर देना चाहिये। समय-समय पर सिंचाई करनी चाहिये।

Don't Miss
© all rights reserved
Managed by 'Todat Warta'