इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश- एससी/एसटी एक्ट और रेप केस में उम्र कैद नहीं, 25 साल काफी
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 (2)(5) के तहत सजा सुनाने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि अभियुक्त यह जानता था कि जिसके साथ वह अपराध कर रहा है वह दलित वर्ग का है और इसी कारण उसके साथ अपराध कर रहा है। इसी के साथ कोर्ट ने रेप और एससी-एसटी एक्ट में उम्रकैद की सजा रद्द कर दी है। रेप के आरोप में भी अभियुक्त की जेल में बिताई गई 25 वर्ष की अवधि को सजा के लिए पर्याप्त माना और अभियुक्त को बरी करने का आदेश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति एसएस प्रसाद की खंडपीठ ने बस्ती के मनीराम चौधरी की अपील पर सुनवाई के बाद दिया है। अपीलार्थी के खिलाफ बस्ती के कप्तानगंज थाने में 9 दिसंबर 2002 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी कि उसने स्कूल से घर लौट रही 12 वर्षीय दलित छात्रा से रेप किया था। यह एफआईआर छात्रा की शिकायत पर उसके परिवार वालों ने उसी दिन थाने में दर्ज कराई। मेडिकल परीक्षण में छात्रा से रेप की बात साबित हुई। बाद में सेशन कोर्ट बस्ती ने 21 मई 2004 को मनीराम को नाबालिग दलित छात्रा से रेप का दोषी ठहराते हुए रेप व एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(5 ) के तहत अलग-अलग उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही उस पर 20 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया।