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जयंती विशेष: भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान से जन आन्दोलनों की धार तेज हुई

Wednesday, September 28, 2022

/ by Today Warta


ललितपुर। शहीदे आजम सरदार भगतसिंह की जयंती पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि  23 मार्च को फाँसी के फंदे को चूमने वाले शहीदे आजम भगतसिंह की उम्र मात्र 23 वर्ष थी। फाँसी से 3 दिन पूर्व पंजाब के गवर्नर को लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि शक्तिशाली शक्तिहीन श्रमिकों के आय के साधनों पर एकाधिकार करते हुए , उनके श्रमफल की चोरी करते रहेंगे। इसीलिए साम्राज्यवाद और पूँजीवाद कुछ दिनों के मेहमान हैं। हमारा संघर्ष हमारे जीवन के पश्चात दिनोंदिन शक्तिशाली होता जायेगा। उनका मानना था कि क्रान्ति मानव जाति का अनुल्लंघनीय अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है। मानव एकता को तोडने वाली धर्मान्धता को वे विकास का सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। इसीलिए वे कहते थे कि सामाजिक क्रान्ति लगातार चलती रहना चाहिए। क्रान्तिकारी ही मानवता का सच्चा पुजारी होता है। उन्होंने न्यायालय में स्पष्ट घोषणा की थी कि ज्यों ही कानून सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करना बंद कर देता है, त्यों ही जुल्म और अन्याय को बढाने का हथियार बन जाता हैं। जलियांवाला बाग के सामूहिक हत्याकांड को देखकर युवा भगतसिंह ने अपनी लाहौर कालेज की पढ़ाई छोड़ दी और नौजवान क्रान्तिकारी पार्टी का गठन किया जिसके माध्यम से उन्होंने जनसेवा, त्याग और हर तरह की कुर्बानी देने वाले नवयुवकों को संगठित किया। उनका स्पष्ट कहना था कि अत्याचारी और जनविरोधी चाहे भारत का हो अथवा विदेशी हमें दोनों के खिलाफ संघर्ष करते हुए, पराजित करना है जिससे कि समता और न्याय आधारित मनुष्योचित् रामराज्य धरती पर फिर से स्थापित हो सके। अपनी नौजवान क्रान्तिकारी पार्टी के घोषणा पत्र में भगतसिंह ने स्पष्ट कहा था कि स्वतंत्रता का पौधा शहीदों के रक्त से फलता है। क्रान्ति कोई मायूसी से पैदा दर्शन नहीं है , यह कोई फूलों की सी जमीं नही है, यह नौजवानों का वह लौह संकल्प है, जो फांसी के तख्ते पर भी मुस्कराता है। फर्ज के बिगुल की आवाज सुनो नींद से जागो और उठो। सरदार भगतसिंह को जब 23 मार्च के दिन फाँसी दी जा रही थी तो जेलर ने उनसे पूछा कि तुम्हारी अन्तिम इच्छा क्या है ? मात्र साढ़े तेईस साल की कच्ची उम्र वाले अडिग निश्चयी भगतसिंह ने कहा कि बेबे की तरह ही यानि अपनी माँ के समान जो इस जेल की महिला सफाई कर्मचारी है, वही मेरी माँ है। अत: अंतिम समय उसकी गोदी में बैठकर उसके हाथ की बनी रोटी खाना चाहता हूँ। जेलर ने माँ को भगतसिंह की इच्छा से अवगत कराया और बड़े प्यार से उसके हाथ का बनाया भोजन ग्रहण किया। अमर शहीद भगतसिंह की हुंकार इंकलाब जिन्दावाद आज भी फिजाओं में जिन्दा है, जिसका अर्थ है प्रगति के ल्ए परिवर्तन की भावना एवं संकल्प। उनका मानना था रूढिवादी क्रान्ति शब्दमात्र सुनकर कांप उठते हैं और यथास्थितिवाद से चिपके रहना चाहते हैं। जबकि मानव जीवन अशोक के चक्र की तरह गतिशील है, जो तीन दो एक के स्थान पर एक दो तीन की गति से आगे से भी आगे अग्रसर होना चाहता है। वस्तुत: बेहतर से भी बेहतर और सबसे बेहतर के निर्माण में वह इसलिए नक्त-दिव संलग्न रहता है। क्रान्ति का अर्थ, रक्तरंजित संघर्ष से हरगिज नहीं है। अर्जुन की आँखें खोलते हुए भगवान कृष्ण का कथन कितना सटीक है कि अत्याचारी, पापी जनद्रोही अपने कुकर्मों से पहले से ही मरे हुए हैं। मनुष्य होने के नाते तुम्हें तो सिर्फ निमित्त बनना है।

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