कौशाम्बी। स्वच्छ रहे, स्वस्थ्य रहे आदि नारों के साथ चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के अंतर्गत स्वच्छ शौचालयों के निर्माण पर भले ही सरकार द्वारा करोड़ो रुपये खर्च कर दिए गए हों लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों के नौनिहाल खेतों का ही सहारा लेते दिख रहे हैं। कारण है कि अधिकांश केंद्रों पर बने शौचालय या तो पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं या फिर पानी के संकट के चलते उपयोग में नहीं आ पा रहे हैं। दरअसल, स्वच्छता को ही स्वास्थ्य का मुख्य आधार माना जाता है। ऐसे में जहां प्रत्येक गांव में शासन स्तर से भारी भरकम अनुदान देकर स्वच्छ शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है। ताकि किसी को शौच के लिए बाहर न जाना पड़े। इसी तरह बच्चों में भी शुरूआती दौर से ही स्वच्छता व शौचालयों के उपयोग की आदत डाली जा सके जिले में स्थित लगभग दो हजार आंगनबाड़ी केंद्रों पर कहीं भारत साक्षर मिशन तो कहीं विभागीय स्तर से शौचालयों का निर्माण कराया गया है। इस पर करोडो रुपये खर्च किए गए हैं किंतु अधिकांश केंद्रों पर बने शौचालयों की दशा पूरी तरह बदहाल हो चुकी है। निर्माण के चंद दिनों बाद ही गंदगी से पट चुके शौचालय उपयोग में नहीं आ पा रहे हैं। इससे आज भी बच्चों को शौच के लिए खेतों का ही सहारा लेना पड़ रहा है। वैसे इसके पीछे सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है शौचालयों में पानी की व्यवस्था का न होना। क्योंकि पानी के अभाव में ही शौचालय कुछ दिनों बाद या तो गंदगी से पट जा रहे है या फिर उसका ताला नहीं खुल पा रहा है। बहरहाल जो भी हो लेकिन करोडो रुपये खर्च होने के बाद भी बच्चों को शौचालयों का कोई लाभ नहीं मिल रहा है।