देश

national

सरकार की कोशिशो के बाद,आखिर कब रूकेगा बालश्रम

Friday, September 9, 2022

/ by Today Warta



गरीब बच्चें परिवार का पालन पोषण के लिये करते है,मजदूरी

कौशाम्बी। गरीबो के सामने कानून काफी बौना नजर आने लगा है। बाल सुलभ क्रीड़ा, करने की उम्र में बच्चें स्कूल की बजाये पेचकस प्लग.पाना लिए जहां दुकानो पर काम कर रहे है या फिर होटलो पर गिलास प्लेटें धो रहे है, लेकिन फिर भी बालश्रम कानून इसको रोक नही पा रहा है। गरीबी से बेहाल परिवारों के ये बच्चे पेट की भूख मिटाने के लिए इन दुकानो में काम कर रहे है जिसकी वजह से उनका भविष्य ही अंधकारमय हो रहा है चंूकि जिस उम्र में उन्हे स्कूलो में होना चाहिए उस उम्र में यह 12 से 14 घंटे तक अपना तथा परिवार का पेट भरने के लिये रोज मजदूरी करना पड़ता है। फिर भी कई घर परिवार ऐसे है जिनमें हर व्यक्ति का पेट नही भरता है। और यही लोग अपने बच्चों को मजदूरी करने के लिए विवश करते है। यही से शुरू होता बाल श्रम कानून की धज्जियां उड़ाने का सिलसिला, जबकि बच्चों से मजदूरी करवाकर अपने परिवार का पालन पोषण कराना इनके लिए मजबूरी हो गयी है। कम उम्र के बच्चो को काम करते देखकर लगता है कि भारत देश का बचपन ही अब बालश्रम की चपेट में है तो इनका भविष्य क्या होगा। अन्धकार मय जीवन व्यतीत कर रहें,बाल श्रमिकों की ओर जिला प्रशासन की एक नजर भी नही जाती है। एक बाल श्रमिक से बात करने पर उसने बताया कि अपने हम उम्र के बच्चों को स्कूल जाते देखकर ही संतोष कर लेता हंू। उसका यह उत्तर शिक्षा की ललक होने का आभास कराता है। संविधान के तहत 14 वर्ष  तक के बच्चो को अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान है, लेकिन परिवार में व्याप्त आर्थिक तंगी अभी भी भारी तादाद में बच्चो को स्कूल जाने से रोके हुये है। सर्वशिक्षा अभियान भी इन बालकों को होटलो तथा दुकानो की कप प्लेट धोने, घरेलू नौकरी करने आदि कामो को करने से नही रोक पा रही है। एक तरफ देश के अमीर बच्चों को मंहगे स्कूलों में लोग दाखिला दिला रहे है तो दूसरी ओर गरीब के बच्चें अपने व परिवार का पालन पोषण करने के लिये मेहनत मजदूरी करते है। यह लोकतंत्र का मखौल नही तो और क्या है। जिला प्रशासन को इस ओर सख्त कदम उठाना चाहिए तथा इन बाल श्रमिकों को स्कूल भिजवाने की व्यवस्था करायी जानी चाहिये। 


Don't Miss
© all rights reserved
Managed by 'Todat Warta'