राकेश केशरी कौशाम्बी। मैं कौशाम्बी हूं,दोआबा व जिले की उथल.पुथल का चश्मदीद गवाह। मेरे सीने में तमाम राज दफन पड़े हैं जिन्हें व्यक्त करने के लिए मैं छटपटा रहा हूं। मैंने गौतम बुद्ध को घोषिताराम बौद्ध बिहार में चतुमार्सा करते देखा है। जैन धर्म के छठें पद्म प्रभु को प्रभाषगिरि में कौशल्य ज्ञान प्राप्त करते भी देखा। मैंने धर्म के दीप को जलते देखा तो अपनी आंखों से रिश्तों का कत्ल होते हुए भी देखा है जब अलाउद्दीन ने अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी का वध किया था। मैंने कड़ा में धर्म के दीप को अर्हनिश जलते हुए देखा है तो जिले में पानी से जूझते हुए ग्रामीणों को देखा। पानी के लिए मेरी आंखों के सामने ही मारामारी होती है पर मैं कुछ नहीं कर पाता। जल संकट मुझ पर आफत बनकर टूटा है लेकिन जल निगम के अधिकारी रोम जल रहा है, नीरो बंशी बजा रहा है की तर्ज पर अपने कर्तव्य को अंजाम दे रहे हैं। अधिकारियों की लापरवाही पर मुझे बहुत कोफ्त होती है। एक वक्त था जब एक कुआं पूरे गांव के लोगों की प्यास बुझाता था। आज दरवाजे- दरवाजे पर हैंडपंप लगे हैं फिर भी हम प्यासे हैं। मैं साफ देख रहा हूं कि अधिकतर हैंडपंप खराब हैं। जो हैंडपंप ठीक हैं वे गंदा पानी दे रहे हैं। अपना व परिवार की प्यास बुझाने के लिए प्रदूषित जल पीने को मजबूर हूं। मैं अपनी आंखों से पानी के लिए विवाद होते देख रहा हूं। यही हालात रहे तो पानी के लिए जगह.जगह जंग होगी। किसी ने कहा भी है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। उस हालात में यहां के जिम्मेदार अफसर कुछ कर नहीं पाएंगे। मुझे ताज्जुब तो इस बात का है कि हर वर्ष पानी के लिए यहां त्राहि.त्राहि मचती है। इसके बावजूद मैंने किसी भी जिम्मेदार के विरुद्ध प्रतिकूल प्रविष्टि दर्ज होते नहीं देखा है। मैं कस्बों में बगैर टोटी वाले नल से पानी को व्यर्थ बहते देखता हूं जबकि इसी के लिए गांवों में जंग है। जल संरक्षण नहीं होने से मेरे भीतर का पानी सूखता जा रहा है। यही हाल रहा तो जो थोड़ा.बहुत पानी मिल रहा है उसके भी लाले पड़ जाएंगे। एक वक्त था जब मेरी कोख नदी, तालाबों व कुओं के पानी से काफी हरी.भरी थी लेकिन उनमें पानी की मात्रा घटने से मेरी कोख सूखने के कगार पर है।
बर्बाद हो रहा पानी, खतरे में पडी लोगो की जिंदगानी
जल ही जीवन है, यह सूत्र वाक्य बताने के लिए काफी है कि जगह.जगह पानी की बबार्दी से लोगों की जिंदगानी पर खतरा बढ़ता जा रहा है। बीहड़ के गांव हों या फिर कस्बाई इलाके पानी के लिए त्राहि.त्राहि मची है लेकिन उसकी बबार्दी पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है। जलापूर्ति शुरू होते ही टूटी पाइप लाइन व टोटियों से पानी की बबार्दी शुरू हो जाती है। बतां दें कि जनपद की आंठ नगर पंचायत व दो नगर पालिका की आबादी टंकी से होने वाली जलापूर्ति पर निर्भर है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के लगभग 400 गांवों में लोग हैडपंप पर आश्रित हैं। जबकि कस्बाई क्षेत्र में मुसाफिरों के लिए लगे बिना टोटी के स्टैंडपोस्टों पर पानी बहता रहता है। वहीं सर्विस सेंटरों पर वाहनों की धुलाई में सैकड़ों लीटर पानी बर्बाद किया जा रहा है। जबकि नगर पंचायते पानी के उपयोग को लेकर इन बातो पर बल देती है कि शेविंग के समय नल खुला न छोड़े, गाड़ी धोने के लिए कपड़े धुलने से बचा पानी इस्तेमाल करें, कहीं खुली टोटी से पानी बह रहा हो तो उसे तत्काल बंद कर दें,बारिश के पानी को पुना उपयोग के लिए वर्षा जल संचयन संयत्र बनवाएं,बावजूद इसके पानी की बबार्दी पर नियंत्रण पूरी तरह से तभी संभव है जब लोग खुद इसके लिए जागरुक हों।