ललितपुर। कनुप्रिया लाड़लीजू राधाष्टमी पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि सत चित और चैतन्य तो जीव में भी पाये जाते हैं, परंतु ब्रह्म की विशेषता उसका आनंदमय रूप है। राधा उसी रसस्वरूप-प्रेमस्वरूप सच्चिदानंद की आल्हादनी शक्ति है, जिसके अभाव में प्रेम असम्भव है। श्रीमदभागवत महापुराण में व्यास पुत्र शुकदेवजी, जो आजन्म नित्य शुद्ध पवित्र हैं, वे ही गोपियों के विलक्षण प्रेम के सच्चे निरूपक हैं। हर समय जिसके हृदय में काम, धन और यशलिप्सा के बुलबुले उठते रहेगें, वह गोपीवल्लभ, वृन्दावन बिहारी, राधाधर सुधापान शालिवनमाली गोपबेषष्य विष्णु: से गोपियों की अनंत प्रेमिल -भक्ति समझ ही नहीं सकता। कृष्ण के प्रेमावतार का चरम उद्देश्य यही गोपी प्रेम है, जिसकी पूर्ण अभिव्यक्ति राधाजी में दिखाई देती है। मानवीय रागों में सबसे प्रबल राग है: प्रेम। वनवासिनी अशिक्षिता ब्रजबालाओं के अनन्य प्रेम को देखकर ज्ञानगुमानी उद्धव का अहंकार पानी -पानी हो जाता है, जब वे वृन्दावन में गोपियों की चरण रज का सेवन करने वाली लता या झाडय़िों में से कुछ भी हो जाने पर अपने को धन्य मानने लगते हैं। कैसा विलक्षण मधुर संयोग है कि प्रेमावतार कृष्ण से सभी प्रेम करते हैं किन्तु स्वयं श्रीकृष्ण राधाजी से प्रेम करके उनके साथ अद्वैत होकर समस्त भेदभावों की जड़ काटकर मानवमात्र में ऐकमेक हो जाते हैं।