कौशाम्बी। अगर बच्चे के वजन में लगातार वृद्धि हो रही हो तो खुश होने की बात नहीं,बल्कि सावधान होने की जरूरत है। दरअसल यह आसन्न बीमारी का लक्षण है। समय रहते अगर इसका उपचार हो गया तो ठीक, नहीं तो कई गंभीर बीमारियां बच्चों के शरीर में घर कर जायेंगी। बाल रोग विशेषज्ञ डा0 राहुल केशरवानी ने बताया कि आज के बदलतें जीवन शैली में फास्ट फूड व आराम तलबी के साथ-साथ देर रात तक टीवी व कम्प्यूटर स्क्रीन पर बैठना भी बच्चों के फैट को बढ़ा रहा है। बच्चे आउटडोर गेम की जगह इनडोर गेम ज्यादा पसंद कर रहे है। बाल मोटापा आम बात है। पूरे देश में 20 प्रतिशत बच्चे मोटापे से ग्रस्त है। मोटापा ग्रस्त बच्चों में हाई कोलेस्ट्राल,फैटी लीवर व टाइप टू डाइबिटीज बीमारी का खतरा ज्यादा रहता है। इसके अलावा हृदय रोग का भी खतरा बना रहता है। बताया कि 12 वर्ष की उम्र तक के फैटी बच्चों को चिकित्सक से सम्पर्क कराना चाहिए। उस उम्र तक मोटापे के कुछ कारणों का इलाज कराने से चालीस फीसदी फैटी बच्चों को पूर्णतया ठीक किया जा सकता है। किंतु उस उम्र के बाद ठीक होने की संभावना निरंतर कम होती जाती है। 18 वर्ष के बाद तो इलाज से मोटापा कम करना कठिन हो जाता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी मोटे बच्चों को इलाज से ठीक किया जा सके। उन्होंने बताया कि जैसे ही पता चले कि बच्चों में सामान्य से अधिक मोटापा हो रहा है तो तत्काल उनके खानपान को संतुलित कर देना चाहिए। जंक फूड तो बिल्कुल भी नहीं खाने देना चाहिए। बताया कि बाल मोटापा के कई कारण होते है। इनमें से एक जेनेटिक होता है, इसमें मां-बाप में से अगर कोई मोटा हो तो बच्चा भी हो सकता है। दूसरा रेसियल, जिसमें खान-पान एवं आबोहवा के कारण मोटापा होता है। तीसरा सिजेण्डरी, इसमें अधिक कैलोरी लेने से अथवा माता को सुगर होने पर भी मोटा होने का चांस रहता है। चैथा हार्मोनल डिजीज के कारण होता है। सिजेण्डरी व हार्मोनल मोटापे का तो इलाज हो सकता है, लेकिन जेनेटिक एवं रेसियल मोटापा तो संतुलित खानपान एवं व्यायाम से ही नियंत्रित हो सकता है।