पौधरोपण के आंठ से नौ माह में आ जाता हैं फल
कौशाम्बी। बाजारों में मिलने वाला पपीता जहा अल्पावधि में अधिक पैदावार देने वाला होता है,वहीं अति स्वास्थ्यवर्धक भी। खेतों में इसकी खेती के साथ अन्य फसल की खेती भी की जा सकती है। इसकी खेती सघन व अंतराशस्य फसल के रूप में की जा सकती है। गृह वाटिका के लिए पपीता प्रमुख फल है। पपीता स्वास्थ्य की दृष्टि से गुणकारी फल है। इसमें विटामिन ए प्रचुर मात्रा में तथा विटामिन सी औसत मात्रा में होता है। किसान इसकी खेती कर दो गुना लाभ कमा सकते हैं। जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि दोमट या बलुई मिट्टी इसके लिए उत्तम होती है। भूमि में जल निकास का प्रबंध अति आवश्यक है। जड़ों तथा तनों के पास पानी की अधिक मात्रा रुके रहने से जड़ सडने लगती है। मृदा का पीएच मान 6.5 से 7 तक होना चाहिए। उन्होंने बताया कि पपीता की प्रमुख प्रजातियों में,वाशिगटन,कोयम्बटूर,पूसा नन्हा आदि प्रमुख हैं। बीज उत्तम श्रेणी का होना चाहिए। पपीता की बुवाई सितम्बर तथा फरवरी मार्च की अच्छी है। बीज की बुवाई गमला या पॉलीथीन के बैग में करनी चाहिए। पौधे जब जमीन से 15 सेमी ऊंचे हो जाएं तो 0.37 फफूंदी नाशक के घोल का छिड़काव करना चाहिए। अच्छी तरह से तैयार खेत में 2 गुणे दो मीटर की दूरी पर 50 गुणे 50 गुणे 50 सेमी आकार के गड्ढे में आधा सड़ी हुई गोबर की खाद एवं आधा मिट्टी मिलाकर जमीन की ऊंचाई से 10.15 सेमी लगाकर गड्डे की भराई के बाद सिंचाई करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि पपीते में फल पौधरोपण के लगभग आठ नौ माह बाद आना शुरू हो जाता है। एक स्वस्थ पेड़ से औसतन 35 किग्रा फल आसानी से प्राप्त हो जाता है। सब्जी, चोखा या इस तरह से प्रयोग के साथ ही पपीते का मुरब्बा,हलवा,अचार आदि स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है।
पपीते की खेती से किसान हुआ खुशहाल
पपीता की खेती द्वाबा के किसानों के लिए समृद्धि का कारण बन सकती है बशर्ते सरकार किसानों को बाजार व उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराये। बतां दें कि सिराथू तहसील क्षेत्र के रामपुर धमावा के मजरा भइसहा गांव में लगभग 10 विस्वा क्षेत्रफल में पपीता की खेती करने वाले शारदा प्रसाद मौर्या ने बिना किसी के सहयोग के उन्नत किस्म के पपीता की खेती कर क्षेत्र के किसानों के सामने एक उदाहरण पेश किया है। मानो उन्होंने किसानों को संदेश दिया है कि परम्परागत खेती को छोड़ दिया जाय तो खेती-किसानी फायदे का धंधा साबित हो सकता है। बिहार से उन्नत किस्म के पपीता का बीज लाकर भइसहा में खेती कर उससे उत्पादित पपीता क्षेत्र के बाजारों के अलावा इलाहाबाद की मंड़ी में भेज कर लगभग 35 हजार रुपये का शुद्ध लाभ कमाने का एक रिकार्ड कायम किया है। हालांकि शारदा यहां के कृषि व बागवानी विभाग द्वारा किसी तरह का सहयोग नहीं करने पर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहते है कि नौकरशाही नहीं चाहती कि किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो। शारदा ने बताया कि किसानों को सरकारी सहयोग व समर्थन मिल जाये तो सोने में सुहागा हो जाय और इलाके की तस्वीर ही बदल सकती हैं।