सितंबर के मध्य व अक्टूबर के पहले सप्ताह में पूरी करें बोआइ
बलुई व दोमट मिट्टी के साथ जलनिकासी की उचित व्यवस्था जरूरी
कौशाम्बी। आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है। किसानों के लिए यह फसल काफी मुनाफा देने वाली साबित होती है। जरूरी है कि किसान फसल की अगेती खेती करें। इससे आय और बेहतर होगी। इसकी मांग बाजार में हर मौसम में रहती है। यदि पहले फसल तैयार हुई तो बाजार में हाथों हाथ ली जाएगी। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और वह मालामाल हो जाएंगे। कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज सिंह ने बताया कि सामान्य रूप से आलू की अच्छी खेती के लिए फसल अवधि के दौरान दिन का तापमान 25-30 और रात का तापमान चार-15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। फसल में कंद बनते समय लगभग 18-20 डिग्री सेल्सियस तापक्रम सर्वोत्तम होता है। आलू की फसल सभी प्रकार की भूमि, जिसका पीएच मान छह से आठ के बीच हो, उगाई जा सकती है लेकिन, बलुई व दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है। इसके साथ ही उचित जलनिकास वाली भूमि में सर्वोत्तम उपज मिलती है। अगेती फसल की बोआइ सितंबर मध्य से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। मुख्य फसल की बोआइ मध्य अक्टूबर के बाद की जानी चाहिए। आलू के खेत की तैयारी मिट्टी पलटने वाले डिस्क प्लाउ या एमबी प्लाउ से एक जुताई करने के बाद डिस्क हैरो (12 तवा वाले) से करने के बाद कल्टीवेटर से कर लें। आलू की बोवाई के लिए प्रति कंद 10 से 30 ग्राम तक वजन वाले आलू की रोपाई का प्रयास किया जाना चाहिए। एक हेक्टेयर 10 कुंतल से लेकर 30 कुंतल तक आलू के कंद की आवश्यकता पड़ेगी। आलू की बोआइ से पहले इसे उपचारित करना बेहद जरूरी है। इसके लिए इसे कोल्ड स्टोरेज से निकालकर 10-15 दिन तक छायादार जगह पर रखें। सड़े और अंकुरित न होने वाले कंदों को अलग कर लें। खेत में उर्वरकों के इस्तेमाल के बाद ऊपरी सतह को खोद कर उसमें बीज डालें और उसके ऊपर भुरभुरी मिट्टी डाल दें। लाइनों की दूरी 50 से 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जबकि कंदों से कंद की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
खाद का कितना करें प्रयोग
खेत की जुताई के समय उसमें अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद 15 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। आलू के अधिक उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 150 से 180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें। फास्फोरस व पोटाश की पूरी और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय ही खेत में डालें। शेष बची नाइट्रोजन को मिट्टी चढ़ाते समय खेत में प्रयोग करें।
कितने दिन में करें पहली सिंचाई
रोपाई के 10 दिन बाद और 20 दिन के अंदर ही पहली सिंचाई करनी होगी। इससे अंकुरण शीघ्र होगा और प्रति पौधा कंद की संख्या बढ़ जाती है। जिससे उपज में दोगुनी वृद्धि हो जाती है। इसकी दो सिंचाई के बीच 20 दिन से ज्यादा अंतर नहीं रखना चाहिए। वहीं, खोदाई के 10 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देने से खोदाई करने पर कंद स्वस्थ निकलेंगे। आलू में मिट्टी चढ़ाने का विशेष महत्व है। रोपाई के 30 दिन बाद दो पंक्तियों के बीच में यूरिया का शेष आधी मात्रा यानि 165 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर कुदाल से मेड़ बनाकर प्रत्येक पंक्ति में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। फिर कुदाल से हल्का थप-थपाकर दबा देना चाहिए, ताकि मिट्टी में पकड़ बनी रहे।