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प्रकृति का निस्वार्थ सफाईकर्मी है गिद्ध : रामसमारे यादव

Saturday, September 3, 2022

/ by Today Warta




पौराणिक कथाओं का अहम हिस्सा है गिद्ध : एड.पुष्पेन्द्र सिंह चौहान

ललितपुर। सितंबर माह के प्रथम शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध दिवस मनाया जाता है इसी क्रम में 3 सितंबर को महावीर स्वामी वन्य जीव विहार देवगढ़ में वन्य जीव विहार व मानव ऑर्गेनाइजेशन एवं भारतीय जैव विविधता संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध दिवस पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, संगोष्ठी के दौरान पर्यावरणविद् पुष्पेन्द्र सिंह चौहान ने गिद्ध के पौराणिक महत्व को बताते हुए कहा कि अबिरल भगति मागि बर गीध गयउ हरिधाम।

तेहि की क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम॥ 32॥

गिद्धराज जटायु रामायण का एक प्रसिद्ध पात्र है। जब रावण सीता का हरण करके लंका ले जा रहा था तो जटायु ने सीता को रावण से छुड़ाने का प्रयत्न किया था। इससे क्रोधित होकर रावण ने उसके पंख काट दिये थे जिससे वह भूमि पर जा गिरा। जब राम और लक्ष्मण सीता को खोजते-खोजते वहाँ पहुँचे तो गिद्ध राज जटायु से ही सीता हरण का पूरा विवरण उन्हें पता चला। महावीर स्वामी वन्यजीव विहार के वन क्षेत्राधिकारी राम सामरे यादव ने कहा कि आज सुबह छ: बजे हम लोगो द्वारा देवगढ़ वन क्षेत्र में गिद्धो के घोंसलों की गणना की गई जिसमे  20 घोंसलों को हमारी टीम द्वारा खोजा गया। जिसमे बौद्ध गुफा और सिद्ध गुफा के पास 40 गिद्धों का होना पाया गया। हमारी भाषा और समाज पता नहीं क्यों गिद्धों के प्रति नकारात्मक भाव रखता है। जबकि प्रकृति और पर्यावरण को समझने और उससे लगाव रखने वाला कोई भी व्यक्ति जानता है कि हमारी दुनिया के लिए गिद्ध कितने ज्यादा जरूरी है। वो कुछ ऐसा काम करते हैं जो उनके बिना होना संभव नहीं है। अगर होगा भी तो उसकी इतनी विकृतियां सामने आएंगी कि उसे भुगतना आसान नहीं होगा। कुछ ऐसी परिस्थितियों का सामना आजकल हम कर रहे हैं। गिद्ध निस्वार्थ सफाई कर्मी का कार्य करता है। अधिवक्ता संवाद के राजेश पाठक ने कहा कि मैं अपने बचपन के दिनों को याद करता हूं तो उसमें झुंड के झुंड गिद्धों के चित्र भी याद आते हैं। मेरे घर के बगल में पीपल के बड़े पेड़ पर गिद्ध बैठा करते थे। जब वे उड़ते तो हमारी पतंग की डोर कई बार उनके बड़े-बड़ै डैने में उलझ जाती और वे हमारी पतंग उड़ाकर ले जाते। नीले आसमान में बहुत ऊपर उड़ते हुए उनके काले-काले धब्बे दिखाई पड़ते थे। वे उड़ते नहीं थे, बस हवाओं में मौजूद अलग-अलग धाराओं में अपना पंख खोले तैरते रहते थे। लेकिन निगाहें उनकी जमी पर ही मौजूद होती। जहां कहीं कोई मरा हुआ पशु उन्हें दिखा नहीं, वे नीचे उतर आते थे। तुरंत ही उसकी साफ-सफाई में जुट जाते। प्रकृति ने उन्हें यही काम सौंपा था। हाजमा उनका मजबूत था। सड़े हुए पशुओं के मांस को भी वे पचा जाते। जिला बार एसोसिएशन के सह प्रशासन मंत्री शेर सिंह यादव ने कहा कि भारत में मोटा-मोटी गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती थीं। इनमें से कुछ प्रजातियों की संख्या तो करोड़ों में थी। देश के लगभग सभी हिस्सों में इनकी मौजूदगी थी। लेकिन इंसान की एक छोटी सी चूक ने गिद्धों की आबादी को लगभग साफ कर दिया। 1990 के आसपास पशुओं की चिकित्सा में डायक्लोफेनॉक नामक दवा का इस्तेमाल शुरू किया गया। इसी के बाद गिद्धों की आबादी अचानक ही खतरनाक तरीके से कम होने लगी। झुंड के झुंड गिद्ध मरने लगे। यहां तक कि पक्षी विशेषज्ञों को भी कुछ समझ नहीं आया। तमाम शोध के बाद पता चला कि डायक्लोफेनॉक दवा के इस्तेमाल के बाद भी कई सारे पशु मर जाते थे। चमड़ा उतारकर उन्हें श्मशान में जंगल के किनारे फेंक देते थे। लेकिन, इस मांस को खाने से गिद्ध की किडनी फेल हो जाती थी। डायक्लोफेनॉक जैसी एक दवा ने 15-20 सालों में गिद्दों की 95 फीसदी आबादी समाप्त कर दी। इसका पता चलते ही डायक्लोफेनॉक का इस्तेमाल पशुओं की चिकित्सा में करने पर रोक लगा दी गई। भारत के बाद नेपाल और पाकिस्तान ने भी यही कदम उठाए। लेकिन, तब तक काफी देर हो चुकी थी। अब गिद्धों के संरक्षण के तमाम प्रयास चल रहे हैं। पर गिद्धों की आबादी फिर से तीस साल पहले के स्तर पर पहुंच पाएगी ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती। देवगढ़ ग्राम प्रधान कृपान सिंह यादव ने कहा कि गिद्ध के प्रति नकारात्मक भाव रखना भी एक प्रकार की नकारात्मकता है। अगर कोई है जो पृथ्वी को नोंच-नोंचकर खा रहा है तो वो सिर्फ इंसान है। वही इस प्रकृति और पर्यावरण को तबाह करने पर तुला हुआ है। कोई पक्षी और जानवर तो ऐसा कतई नहीं करता। कम्पोजिट विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजकुमार सिंह ने बच्चो को गिद्ध संरक्षण के लिए प्रेरित किया। इस दौरान वन दरोगा लाखनारायण, वनरक्षक राधेश्याम, एड.प्रसन्न कौशिक, बलराम कुशवाहा, मंगल सिंह यादव, भरत यादव, बादाम सिंह यादव, राजन दद्दा, साजिद खां के अलावा विद्यालय के नन्हे मुन्ने बच्चे उपस्थित रहे।

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