इन्द्रपाल सिंह 'प्रिइन्द्र'
विश्व पर्यटन दिवस पर संक्षिप्त वार्ता में पर्यटन मित्र ने रखी अपनी राय
ललितपुर। विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर बुन्देलखण्ड पर्यटन विकास एवं पुरातत्व संरक्षण समिति सदस्य फिरोज इकबाल 'डायमंडÓ (पर्यटन मित्र) ने एक संक्षिप्त परिचर्चा के दौरान बताया कि विश्व पर्यटन दिवस हर वर्ष 27 सितम्बर को मनाया जाता है। विश्व में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1980 में इसकी शुरूआत की थी। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यटन और सांस्कृति के विषय में जागरूकता फैलाना था। जिसके परिणाम स्वरूप विश्व में इस दिवस को विशिष्ट तौर पर जाना जाता है। बुन्देलखण्ड भारत का ह्रदय प्रदेश है यह मध्य भाग में स्थित यमुना के दक्षिण से नर्मदा तक विस्तृृत विन्धयाचल पर्वत मालाओं की गोद में बसा विन्ध परिक्षेत्र देश के पर्यटन का मुख्य हब बन सकता है। आदिम काल से ही मानव ने बुन्देलखण्ड को निवास और विकास के लिये सुविधाजनक पाया है। देश के कम क्षेत्रों को यह सौभाग्य प्राप्त है कि प्राकृतिक सौंदर्य एवं प्रचुर खनिज वन संपदा के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक परम्परा की एक अटूट श्रंखला कण-कण में व्याप्त हो। पर्यटन के पर्याय के रूप में धरोहरों, विविध रीति रिवाज, संघषों और सांस्कृतिक रंगों का प्रमुख हिस्सा जनपद ललितपुर है, यहां की ललित कलाओं का संयोजन और प्राचीन ऐतिहासिकता गौरवषाली है। देश के अनगिनत स्थल जैसे किले, स्मारक, पुरातात्विक स्थल, प्राकृतिक स्थल ऐसे है जो हमारी अस्पष्ट नीतियों और ढुलमुल रवैये के कारण खंडहर बन चुके है पर इनको संवार कर नया अध्याय लिखा जा सकता है। बुन्देलखण्ड शब्द के स्मरण मात्र से ही मानस पटल पर शौर्य, वीरता, ओज, देषभक्ति एवं त्याग का भाव परिलक्षित होता है। यहां के बहादुर राजाओं-महाराजाओं और वीरांगनाओं ने जो इतिहास बनाया है वह अद्वितीय है साथ ही आल्हा-ऊदल और मलखान जैसे वीर योद्धाओं के गीत बुन्देलखण्ड की आबोहवा में धुले हुये है। हॉकी का दूसरा नाम ध्यानचन्द यहां की विशिष्ट पहचान है। यहां के विशाल दुर्ग, पत्थरों का सीना चीरती हुई खूबसूरत नदियां, प्राचीन मूर्तियां, 200 से अधिक महलों, गढिय़ों एवं मंदिरों के भग्नावेष अतीत के गौरव की कहानी बयां करते हुये बुंदेलखण्ड की सम्पन्ता एवं समृद्धि का गुणगान करते है। अगर शासन प्रशासन द्वारा सकारात्मक पहल की जाये तो यह स्थल पर्यटन की पहचान बन सकते है। यहां वर्ष भर में मनाये जाने वाले तीज त्योहार, विधि विधान और उन त्योहरों पर गाये जाने वाले गीत यहां का मुख्य आकर्षण बन सकते है। देश में बोली जाने वाली बोलियों में बुंदेंली भाषा का विस्तार अनूठा है। मनोरंजन की ऐसी विधायें उपलब्ध है जो मनोरंजक के साथ ही शिक्षाप्रद भी हैं। यहां का राई, सैरा नृत्य विशिष्ट स्थान रखता है जिसमें नृत्य, संगीत, अभिनय और शौर्य की छटा एक साथ दिखाई पड़ती है। यूं तो बीता हुआ कल तो कभी वापस नहीं आता परन्तु हम ऐतिहासिकता को संजोकर उन्हें सुरक्षित व संरक्षित कर विकास की नयी इबारत लिख सकते है। अगर ऐतिहासिकता को संजोया जाये तो यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र पर्यटन का मुख्य केन्द्र बनकर उभरेगा। मैनें अपने आस-पास के धरोहरों और प्राचीन सम्पदा को देखने के लिये 86000 किमी. से अधिक यात्रा मोटर साईकिल से करते हुये नजदीक से पुरातात्विक धरोहरों को समझा है और विरासत के प्रति जनजागरूकता फैलायी है जिससे बुन्देलखण्ड क्षेत्र में वैश्विक व स्थानीय पर्यटन बढ़ा है। बुन्देलखण्ड में पर्यटन की असीम सम्भावनायें ओरछा, खजुराहों के मंदिर, चित्रकूट, कालिंजर, छतरपुर, सांची, शिवपुरी, महोबा, धामोनी, झांसी, बरूआसागर, पारीछा, कालपी, दतिया, कुण्डेश्वर, गढ़कुण्डार, टीकमगढ़, सागर, चन्देरी, जालौन, ललितपुर में द्रष्टिगोचर होती है। वहीं जनपद ललितपुर में अमझरा घाटी, बालाबेहट, बन्दरगुढ़ा, बन्ट, बानपुर, देवगढ़, चांदपुर-जहाजपुर, दूधई, जमालपुर, करकरावल, खजुरिया, लखन्जर, मदनपुर, माताटीला, रणछोर धाम व मुचकुन्द गुफा, नीलकन्ठेष्वर पाली, पांडववन, पवागिरी, राजघाट, तीर्थक्षेत्र सिरोंन जी, सिरसी, चंडीमाता मंदिर जल प्रताप, कन्कदढ़ जल प्रपात, झूमरनाथ, नवागढ़, लखन्जर, पापरा, गौठरा एवं तालबेहट पर्यटन के लिये सर्वथा उपयुक्त है। मूर्ति षिल्प के रूप में ललितपुर का अद्वितीय योगदान है। इस भूभाग पर मूर्तिकला के अनेक अभिनव प्रयोग किये गये है, यहां पर मध्यकालीन प्रतिमाओं का अपरिमित भण्डार है जो धातु, मिटटी, काष्ठ व पाषाण पर उकेरी गयी है, जिनमें षिल्प, ज्ञान, भक्ति, धार्मिक, दार्षनिक एवं मूर्तिकला आदर्षो की सौन्दर्यानुभूति द्रष्टिगोचर होती है। बारह बांधों का विषाल जलसंचय यहां वाटर स्पोटर्स के लिये आर्दष साबित हो सकता है। बन्दरगुढ़ा, देवगढ़, रणछोरद्याम, चांदपुर-जहाजपुर, बंट चुवन जलप्रपात, नरसिंह प्रतिमा, दूधई और नीलकण्ठेष्वर पाली को मिलाकर यहां पर्यटन सर्किट का निर्माण जनपद ललितपुर के विकास के लिये मील का पत्थर साबित हो सकता है। बुन्देलखण्ड के विषाल सुन्दर तटीय क्षेत्र, सघन वन, वास्तुकला, ऐतिहासिक धरोहरें और समद्धषाली इतिहास, महारानी लक्ष्मीबाई, आल्हा-ऊदल और मलखान, राजा वीरसिंहदेव, राजा यषोवर्मन, मधुरकर शाह, दीवान हरदौल, बुन्देलखण्ड केषरी वीर छत्रसाल, राजा मर्दन सिंह, रानी सारन्धा, चम्पतराय, लोककवि ईसुरी जैसे वीर योद्धाओं के गीत कहानियां दूर-दूर देषों से पर्यटक को लाने में सक्षम है। बुन्देलखण्ड की धरती में उत्पन्न क्रान्तिवीरों का स्वाधीनता आन्दोलनों मेें अत्यन्त महत्वपूर्ण सक्रिय योगदान हमें जन-जन तक पहुंचाने के प्रयास करने होंगे साथ ही हम सब को भी अपने आस-पास पर्यटन स्थलों के भ्रमण पर जरूर जाना चाहिये, जिससे आने वाली पीढ़ी विरासत के महत्व को जान सके। पर्यटन से न सिर्फ रोजगार सजृन होगा, वही क्षेत्र का पिछड़ापन भी दूर होगा।