राजेंद्र प्रसाद मिश्रा
बारा तहसील में अभी तक फरियादी महिलाओं व कर्मचारी महिलाओं के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं की गई है। जिससे महिलाओं को तहसील आने पर भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। एक तरफ सरकार स्वच्छ भारत मिशन के तहत करोड़ों रुपये विज्ञापन के नाम पर खर्च कर रही है। गाँव की गलियों में जा-जाकर जागरूकता फैलाने वाले अधिकारी व कर्मचारी आखिर अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए आवाज बुलंद क्यों नहीं कर रहे हैं? छोटी-छोटी बातों को लेकर हड़ताल करने वाले कर्मचारी कब समझेंगे कि स्वास्थ्य की सुरक्षा होनी चाहिये। ऐसी लचर व्यवस्था कहीं न कहीं सिस्टम पर सवाल खड़े कर रही है। इसके पूर्व में बारा में उपजिलाधिकारी सौम्या गुरुरानी थीं। महिला होने के बावजूद भी उन्होंने इसकी कोई चिंता नहीं की, और न ही कोई प्रयास किया। जब आईएएस और पीसीएस अफसर इन बातों को लेकर गम्भीर नहीं दिख रहे हैं तो आम कर्मचारियों से क्या उम्मीद की जा सकती है। अगर तहसील प्रशासन चाहे तो वर्तमान के लिए पोर्टेबल इज्जतघर की व्यवस्था तो कर ही सकता है। जिससे महिला फरियादियों और महिला कर्मचारियों की समस्या का अस्थायी निदान तो हो ही सकता है,मगर ऐसी आशा दिखाई नहीं दे रही है।