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मिशन क्लीन इन्डिया में गुरूजी बने सबसे बड़ा रोड़ा

Friday, October 21, 2022

/ by Today Warta



राकेश केसरी

अधिकतर प्राथमिक विद्यालयों के शौचालय में गुरुजी ने जड़ा ताला

कौशाम्बी। जिले मे अफसर और सरकारी स्कूलों के अध्यापक प्रधानमंत्री मोदी के स्वछता मिशन को पलीता लगा रहे है। मामला प्राइमरी शिक्षा से जुड़े स्कूलों का है। जहाँ गुरूजी खुद ही बच्चो को खुले में शौच के लिए मजबूर कर रहे है। मौजूदा समय में हालात यह है कि सभी सरकारी स्कूलों में शौचालय तो बने है,पर इस टॉयलेट पर स्कूल के गुरूजी का ताला हमेसा लगा रहता है। गुरूजी की इस करतूत पर जिले के बड़े शिक्षा अधिकारी केवल अपनी कार्यवाही की बयान बाजी तक ही सीमित है। गौरतलब हैं की जिलें के प्राथमिक स्कूलों में शौचालय और उसकी स्वच्छता की यह तस्वीरें टीचरो व सरकारी उपेक्षा का हाल बताने के लिए काफी है। जिले में एक हजार से अधिक प्राथमिक व जूनियर विद्यालय हैं। सभी विद्यालयों में छात्र व छात्राओं के लिए अलग.अलग शौचालय बनाए गए हैं। इतना ही नहीं इन शौचालयों के रख रखाव के लिए 5000 रुपये सालाना दिया जाता है पर इस धन की बन्दर बाँट स्कूल के टीचर और अधिकारी कर जाते है। कई ऐसे विद्यालय हैं जहां के शौचालय बने तो छात्रों के लिए हैं,लेकिन इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगी है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि शिक्षको ने इस पर कब्जा कर रखा है, वह भी बाकायदा ताला लगाकर। शिक्षकों की इस मनमानी से छात्र और छात्राओ को स्कूल समय में खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। शौचालय बनवाने के पीछे सरकार की मंशा थी कि पर्यावरण प्रदूषित न हो। स्कूल की छात्राओं को बाहर न जाना पड़े। छात्राओं की सुरक्षा के लिहाज से भी इसे महत्वपूर्ण माना गया है। इसके बावजूद शिक्षक इस व्यवस्था को लेकर तनिक भी गंभीर नहीं हैं। वही बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों का मानना है कि कुल बने शौचालयों में दस फीसद ध्वस्त हैं। इसकी रिपोर्ट आई है,इन्हें दुरुस्त कराने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि यह रिपोर्ट संतोषजनक नहीं है। दस फीसद नहीं बल्कि ध्वस्त शौचालयों का आंकड़ा इससे ज्यादा है। इसके अलावा स्कूलों के शौचालयों की साफाई नहीं कराई जाती। गंदे पानी व कीचड़ से शौचालय पटे हुए हैं,लेकिन विद्यालय के जिम्मेदार शिक्षक इनकी सफ ाई नहीं कराते। ध्वस्त शौचालयों की रिपोर्ट को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग एकदम से चुप्पी साधकर बैठ गया है। ध्वस्त शौचालयों को बनवाने की प्रक्रिया को लेकर अफ सर गंभीर नहीं हैं। जबकि इस सुविधा का लाभ न मिलने से छात्र और छात्राओ को परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं। ध्वस्त शौचालयों की रिपोर्ट में भी आंकड़ेबाजी है। शिक्षक अफसरों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। बेसिक शिक्षा अधिकारी से जब इस मामले पर सवाल किया गया तो उन्होंने जांचकर कार्यवाही की बात कर रहे है। 

प्राथमिक विद्यालयो में प्रबंध समितियो का नही हैं नियंत्रण 

बेसिक शिक्षा परिषद स्कूलों मे अधिकारियों द्वारा सीधे संचालन की प्रक्रिया खत्म हुए दो वर्ष से अधिक का समय हो गया हैं। लेकिन इसके बावजूद भी स्कूलो में प्रबन्ध समितियो का नियंत्रण नही हैं। प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयो में प्रधानाध्यापक पूरी तरह से अपनी मनमानी पर उतारु हैं। जिससे विद्यालयो मे न तो पठन.पाठन का माहौल बन पा रहा हैं और ही मिडडे मील का सही ठंग संचालन हो पा रहा हैं। गौरतलब हो की दो वर्ष से अधिक समय पहले सरकार ने प्राथमिक व माघ्यमिक विद्यालयो में प्रधानाध्यापक और प्रधान के अलावा स्कूलों पर प्रबंध समितियां बनाकर नियंत्रण रखने का निर्देश दिया गया था। जिसके बाद अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत हर स्कूल में 15 सदस्यीय प्रबंध समिति गठित की गयी है। अधिनियम के मुताबिक नगर सहित आठों विकास खंडों के स्कूलों में प्रबंध समिति का गठन तो कर लिया गया। इस 15 सदस्यीय समिति में 11 सदस्य स्कूल के बच्चों के अभिभावक,एक सदस्य स्थानीय प्राधिकारी द्वारा नामित तथा एक एएनएम व लेखपाल को रखा गया है। प्रधानाध्यापक पदेन सदस्य हैं। इनमें 50 प्रतिशत महिलाएं होंगी। अध्यक्ष व उपाध्यक्ष अभिभावकों से चुने गये। सरकार ने यह व्यवस्था दी थी की शिक्षकों से सदस्य अभिभावक व लेखपाल भी जवाबदेही कर सकेंगे। समिति को विद्यालय कार्य प्रणाली का अनुश्रवण करने, विद्यालय विकास योजना बनाने, प्राप्त अनुदान के प्रयोग करने का अधिकार दिया गया। जिसमें सरकार द्वारा समिति को यह अधिकार दिया गया की शिक्षक विद्यालय आ रहे हैं या नहीं? समिति स्कूल के आसपास के सभी बालकों का नामांकन, उनकी निरंतर उपस्थिति की भी जिम्मेदारी उठाने का प्रावधान हैं। अधिनियम के अनुसार समिति को यह देखना था की बच्चों का उत्पीडन तो नहीं हो रहा? उसे प्रवेश लेने से मना तो नहीं किया गया? मध्यान्ह भोजन मिल रहा है या नहीं? जबकि शिक्षक अधिनियम में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि शिक्षकों को जनगणना,आपदा राहत कार्यो, स्थानीय प्राधिकारी या राज्य विधान मंडल अथवा संसद निर्वाचन संबंधी कर्तव्यों के अतिरिक्त अन्य किसी गैर शैक्षणिक कार्यो में नहीं लगाया जाना शामिल था। लेकिन ग्राम प्रधानो व प्रधानाध्यापको ने समिति के गठन में ऐसा खेल किया की विद्यालय में पढने वाले ज्यादातर ऐसे बच्चो के अभिभावको को सदस्य बनाया जो अनपढ़ हैं। जिन्हें इस बात की जानकारी ही नही हैं कि सरकार ने उन्हें किस तरह के अधिकार दिये हैं। और उन अधिकारो का किस तरह से उन्हे प्रयोग करना हैं। जबकि अधिकतर प्राथमिक विद्यालयो मे प्रधानाध्यापक व सहायक अध्यापक अपनी मनमानी करते हैं,समय से स्कूल न आना, विद्यालय में बैठकर गप्पे हाकना,बच्चो को न पढ़ाना,मिडडे मील में व्यापक गड़बडी करना इनके स्वाभाव में शामिल हैं। वही इस संबध मे बीएसए दलसिंगार सिंह यादव का कहना हैं कि सरकार के निर्देश के मुताबिक हर विद्यालय में समिति का गठन हैं। अब सदस्य अपनी जिम्मेंदारी का निर्वाहन न करे तो वह क्या कर सकते हैं। 

प्रधानाध्यापक मध्याह्न भोजन योजना में कर रहे धांधली

तमाम नियम-कानूनों को ताक पर रखकर जिले में मध्यान्ह भोजन योजना का संचालन किया जा रहा है। योजना की मानीटरिंग सिर्फ कागजों पर हो रही है। प्रधानाध्यापक योजना की धनराशि डकारने में लगे हुए है। यह स्थिति ज्यादातर सिराथू इलाके के स्कूलों की है। तहसील क्षेत्र के ज्यादातर विद्यालयो में नियमों को दरकिनार कर भोजन बनाया जा रहा है और योजना के तहत भेजी जाने वाली भारी-भरकम रकम डकारी जा रही है। ठीक यही हाल क्षेत्र के शमसाबाद प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक विद्यालय का है। प्रधानाध्यापक मध्यान्ह भोजन योजना के रजिस्टर में फर्जी छात्र संख्या दर्ज करते है साथ ही मीनू का भी कोई ख्याल नहीं रखते है। इस पूरे खेल में बेसिक शिक्षा विभाग के बाबू अहम भूमिका निभाते है। यही वजह है कि शिकायतों के बाद भी कार्रवाई नही होती। 


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