एक जमाना था जब एक साथ मिलकर हम पारिवारिक फिल्में देखने के लिए अपने परिवार के साथ सिनेमा घर तक जाया करते थे। एक उत्साह होता था कि इस फिल्म की कहानी बहुत ही अच्छी होगी, लोग पहले ही अनुमान लगा लेते थे कि कहानी का स्तर पारिवारिक होगा। उस जमाने में बनने वाली फिल्मों में जो स्वच्छता हुआ करती थी आजकल हिंदी सिनेमा में यह फूहड़ता बनकर रह गई है, ना तो कोई स्टोरी है ना ही साफ-सुथरी फिल्में। हमारे पुराने दौर की रामायण की बात ही अलग थी जिसमें सभी का किरदार प्रभावशाली था। रामायण में राम जी का रूप मनोहारी दिखाया गया है, हनुमान जी की भी एक अलग पहचान थी, भीष्म पितामह के मृत्यु शैया वाले दृश्य ने पूरी रामायण पर जान डाल दी थी, रावण का भी किरदार देखने लायक था, लेकिन आजकल की जो फिल्में बनाई जा रही है क्या वह फिल्में पहले के दौर के रामायण जैसी है? हाल में ही एक फिल्म आ रही है "आदिपुरुष"। उस फिल्म में के विजुअल इफेक्ट इतने बेकार है कि देखने मात्र से लगता है कि इसे किसी कार्टून फिल्म का हिस्सा होना चाहिए, उस पर बनी कहानी और जो वस्त्र उन किरदारों ने पहने हैं, वह पुरानी रामायण से एकदम मेल नहीं खाते हैं। पुरानी रामायण देख कर हम वैसा ही स्वरूप निश्चित कर लेते हैं कि राम जी और हनुमान जी, भीष्म पितामह, सीता जी, रावण सब कैसे दिखते थे, लेकिन आज के "आदिपुरुष" फिल्म देखकर बच्चे अपने मन में क्या जगह बनाएंगे? उनके मन में यही विस्तार होगा कि रामायण में सब ऐसे ही किरदार हुआ करते थे, ये फिल्म का नाम "आदिपुरुष" नहीं! "आदिम मानव" होना चाहिए, फिल्में चाहे जैसी भी हो बस चलनी चाहिए! लोगों का आजकल यही हो गया है। ऐसी फिल्मों का बहिष्कार करना बहुत आवश्यक है, वरना आने वाली पीढ़ी को आप क्या यही "आदिपुरुष" वाले जैसी फ़िल्में की सौगात देंगे? क्या सीखेंगे आपके बच्चे? यह भारतीय समाज सिनेमा का बदलता स्वरूप बेहद खतरनाक हो रहा है, सभ्यता संस्कृति सबका परिहास हो रहा है, मजाक बनकर रह गया है चलचित्र सिनेमा।
ना जाने समाज किधर जा रहा है, लोगों की सोच कर स्तर कितना गिरा है, क्या सीख रहे हैं और क्या फिल्में बना रहे हैं। आजकल मनोरंजन के नाम पर फिल्मों में दिखाए जा रहे हैं उत्तेजक दृश्य गंदे गाने! जिनका ना कोई सिर ना पैर! बस यही सब फिल्मों की टीआरपी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। जब यह फिल्में परिवार के बच्चे, बूढ़े सभी बैठ कर देखते हैं और इसमें कोई दृश्य गलत आ जाता है तो शर्म से सिर झुक जाता है, बच्चे भी इधर-उधर देखने लगते हैं कि हमने यह क्या देख लिया! कामुकता भरी फिल्में बच्चों के भविष्य में गलत प्रभाव डालती है।
फिल्मों में गंदें-गंदें दृश्य बनाकर और इस के गानों में इतना शोर होता है कि एक बार तो मन करता है टेलीविजन ही बंद करके बैठ जाएं। करुणा, शौर्य, वात्सल्य, हौंसले वाली फिल्में अब भारतीय सिनेमाघरों में नहीं दिखाई देती है, कुछ फिल्में ही ऐसी है जिसे देखने का मन करता है जो शौर्यपूर्ण हो। पुरानें जमाने की फिल्मों के गानों में प्रकृति का एक संपूर्ण चित्र और पारिवारिक कहानी का संपूर्ण वृतांत हुआ करता था, जिसे देख कर मन में कई दिनों तक उस कहानी का भाग घूमता रहता था, कम पैसों में अच्छी फिल्में बनाए जाने का हुनर पुरानी हिंदी फिल्मों के डायरेक्टर ही जानते थे। आजकल के हिंदी सिनेमा का स्तर जो गिरा हुआ है इसका असर सीधा लोगों पर पड़ रहा है उसी फिल्मों में लोग जीने लगते है, उनके गलत किरदार को अपने जीवन में ढालने की कोशिश करने मे लगे रहते है।
ऐसी फिल्मों से लोगों का नैतिक पतन हो रहा है, ड्रग्स, स्मगलिंग सब का शिकार हो रहे हैं लोग, अपना भविष्य चौपट कर रहे है और हर कोई सर्वेसर्वा बने बैठे हैं। ऐसे मनोरंजन पर रोक लगानी चाहिए, जिससे लोगों का मानसिक स्तर नीचे गिर रहा हो, ऐसी फिल्मों को सिनेमाघरों में नहीं लाना चाहिए, हमारी भारतीय संस्कृति तभी सुरक्षित रह सकती है जब पारिवारिक फिल्मों को अधिकतर महत्व दिया जाए और फिल्में ऐसी बनाई जाए जिसकी कहानी को देखकर लोग भावुक हो जाए। भारतीय इतिहास में कितनी कहानियां ऐसी है जो पर्दे पर नहीं आ पाती हैं, फिल्मों के माध्यम से इन भारतीय इतिहास की कहानियों को सामने लाना चाहिए, वो भी सुंदर और साफ-सुथरी फिल्मों के माध्यम से।
हमारे इतिहास में कई महिलाएं ऐसी थी जिन की शौर्य गाथा इतिहास में ना के बराबर देखने को मिलती है, हमें उनकी वीर गाथाओं और संघर्ष को सिनेमा में कहानी के रूप में लाना चाहिए, जिसे देखकर लोगों में स्त्रियों के प्रति सम्मान से सिर झुके, ना कि उनका बलात्कार करने के लिए! वीर पुरुषों की कहानी सिनेमा घरों में दिखाई जानी चाहिए जिसका सही असर बच्चों के मन में भी पड़े। आप अच्छे हीरो और हीरोइन तभी बन सकते हैं, जब आप अच्छी चीजों को फिल्मों से ग्रहण करें और बुरी चीजों का परित्याग! ऐसी फिल्मों में बंदिश लगाएं जो गलत प्रभाव डालती है, हमारी भारतीय संस्कृति को स्वच्छ परिवेश दीजिए, जिसे सीख कर आने वाली पीढ़ी अपनी अगली पीढ़ी को निरंतर अच्छी सीख देती रहे। टीवी में दिखाए जाने वाले सीरियल और भारतीय सिनेमा में फिल्में ऐसी होनी चाहिए जिसे देखकर लोगों में गलत भावनाएं उत्पन्न ना हो, युवा पीढ़ी को पतन से बचाए, उनके भविष्य को बचाएं! अश्लील फिल्में देखकर ही लोग गलत वारदातों को अंजाम दे रहे है। भारतीय धरोहर को बचाने का प्रयास कीजिए, उनका मजाक मत बनाइए गलत फिल्में दिखा कर! मनुष्यता का स्तर ऊँचा रखने के लिए गाली-गलौच वाली फिल्में बहिष्कृत करके हम युवा पीढ़ी को बुरे आचरण से बचा सकते हैं, वर्ना आगे आने वाली पीढ़ी सही गलत का फर्क़ नहीं करेगी। इसके गलत प्रभाव से उनका भविष्य सुरक्षित रखने मे ही समाज की भलाई है।
लेखक
पूजा गुप्ता मिर्जापुर उत्तर प्रदेश