राकेश केसरी
कौशाम्बी। करारी नगर पंचायत की ऐतिहासिक रामलीला में बीती रात नारद मोह की लीला के साथ शुरू हो गई। नारद मुनि के अभिमान व उनके स्वयंवर की कथा का मंचन देखने के लिए दर्शकों को काफी भीड़ रही। कथा प्रसंग के मुताबिक एक बार देवर्षि नारद एक गुफा में कड़ी तपस्या करने लगते हैं। उनके तपोबल से देवराज इंद्र का सिंहासन हिल उठता है। देवराज को लगता है कि कोई उनका सिंहासन छीनने के लिए नारद तप कर रहे है। वह नारद की तपस्या भंग करने के लिए अपने कामदेव के साथ अपसराओ को हिमालय भेजते हैं। कामदेव के काफी प्रयास के बाद भी नारद की तपस्या भंग नही होती है। ऐसे में नारद को कामदेव पर विजय पा लेने का अहंकार हो जाता है। अहंकार के वशीभूत नारद ने यह बात भगवान शंकर के मना करने के बाद भी विष्णु जी को बताते हैं। भगवान विष्णु अहंकार चूर करने के लिए माया की नगरी का निर्माण करते हैं। वहां विश्वमोहिनी के स्वयंवर का आयोजन होता है। विश्वमोहिनी को देख नारद काम के वशीभूत हो जाते है। वह शादी करने के लिए भगवान विष्णु के पास सुंदर स्वरूप मांगने जाते हैं, लेकिन भगवान विष्णु उन्हें वानर का रूप दे देते हैं। बाद में खुद स्वयंवर में पहुंचकर वरमाला पहन लेते हैं। इसी के साथ नारद का घमंड चकनाचूर होता है और वह भगवान विष्णु को श्राप देते हैं कि त्रेता में यही वानर-भालू उनकी मदद करेंगे। बाद में राम रूप में सीताहरण के बाद बंदर-भालुओं ने ही प्रभु श्रीराम की मदद की थी। इसके बाद इसकी लीला का यही समापन हो गया।