इन्द्रपाल सिंह 'प्रिइन्द्र'
श्रमण संस्कृति परिषद द्वारा हुए विद्वान सम्मानित
ललितपुर। क्षेत्रपाल मंदिर प्रांगण में श्रमण संस्कृति स्नातक परिषद का अधिवेशन में मुनिपुंगव सुधासागर महाराज ने कहा कि प्रकृति ने कुछ कार्य नियत धारा में स्वयं अपने हाथ में लिया। जन्म मृत्यु पर इंसान का कोई वश नहीं इसे प्रकृति ने स्वयं अपने हाथ में लिया। लेकिन मनुष्य को एक बहुत बडा अधिकार दिया कि जन्म और मृत्यु के बीच का जीवन तुम अपने हिसाब से जी सकते हो। अब तुम्हें कैसा जीवन जीना है इसके निर्माता तुम स्वयं हो। उन्होंने जीवन का मुख्य लक्ष्य समझाते हुए कहा कि कला बहत्तर पुरूष की जामे दो सरकार, एक जीव की जीविका दूजा आत्म पुरूषार्थ। उंन्होंने कहा कि मनुष्य में 72 कलायें होती हैं उसमें दो कलायें प्रमुख हैं एक आजीविका और दूसरी आत्मा का कल्याण। आज की शिक्षा पद्धति मात्र यक्ति को पैसा कमाना सिखाती है इसलिए आज के युवाओं का मुख्य लक्ष्य पैसा कमाना ही रह गया है तो क्या पैसा ही साथ में जायेगा। पैसा हमें भटकाता है और धर्म हमें सही राह बतलाता है। आज की शिक्षा पद्धति पैसा कमाना सिखाती है लेकिन कहां और कैसे पैसा खर्च करना है यह हमें धर्म ही बताता है आजीविका के साथ साथ आत्मा का उत्थान कैसे हो इस बात को हमें हमेशा लक्ष्य बनाना चाहिए। श्रमण संस्कृति संस्थान सागानेर जयपुर राजस्थान के विद्वानों से कहा कि व्याकरणाचार्य, साहित्याचार्य, ज्योतिषाचार्य, सिद्धान्ताचार्य, न्यायाचार्य जिस छात्र की जिस विषय में रूचि हो इनके विशेषज्ञों के द्वारा छात्रों की पढाई सांगानेर में ही हो और पढाई के बाद उक्त उपाधियों से विभूषित किया जाये जिससे इन युावा विद्वानों के द्वारा जिन शासन की प्रभावना हो। संस्थान के गौरव को वढाते हुए मुनिश्री ने कहा कि इस देश में सैकडों की संख्या में तीर्थ क्षेत्र हैं पर प्रतिभास्थली और श्रमण संस्कृति संस्थान ये महातीर्थ हैं जहां पर चेतन कृतियों को तराशा जा रहा है और इस योग्य बनाया जा रहा है कि वह शिक्षा के साथ साथ संस्कारों को भी अपने जीवन में सवम्मान दें और अपना आत्मोत्थान करें। जिसे तुम्हारे उपर उपकार किया चाहे वह मां बाप हों या गुरू या फिर कोई शिक्षालय उसे अपने आचरण के द्वारा सम्मान दिलाओ। शिष्य के नाम से गुरू की पहचान हो, बेटे के नाम से मां बाप की पहचान हो और तुम्हारे नाम से संस्थानकी पहचान हो। कार्य तुम्हारा सम्मान मां बाप गुरू और संस्थान का। लोग सहसा कह पठे के बेटा ऐसा तो मां बाप कैसे होंगे गुरू कैसे होंगे। गुरू की पहचान नहीं तुमसे गुरू को नाम मिले जैसे आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जिनहोंने इस कलिकाल में ही श्रमण चर्या इतनी उत्कृष्ट की कि आज लोग उन्हें इस युग के भगवान मानने लगे। उन्होंने कहा कि तुम भी ऐसा कार्य करो कि तुम भी संस्थान का ध्वज एवं मंगल कलश बन सको।
प्रतिभास्थली का होगा आज शिलान्यास
धार्मिक आयोजन समिति संयोजक ने बताया कि आचार्यश्री विद्यासागर महाराज के अवतरा दिवस शरद पूर्णिमा के अवसर पर मुनिपुंगव सुधासागर महाराज के ससंघ सानिध्य में प्रतिभा स्थली गौशाला परिसर में भव्य भवन का शिलान्यास कार्यक्रम होगा। इसके लिए मुनि संध सुबह 6 बजे गौशाला प्रस्थान करेंगे और वहीं पर शान्तिधारा, अभिषेक, शिलान्यास, प्रवचनों के उपरान्त आहार चर्या एवं सामाइक के उपरान्त श्रीअभिनन्दनोदय तीर्थ क्षेत्र पर वापिसी होगी।