राकेश केशरी
कौशाम्बी। एक किमी दौड़ लगानी पड़े तो खाकी वर्दी पहने जवानों की सांस उखड़ जाए। जिस्म बेडौल,आगे निकली तोंद। यह हाल है जिले में 30 फीसदी सिपाहियों व दरोगाओं का। दौडना तो दूर उनसे तेज चला भी नहीं जाता। वजह थानों व पुलिस लाइन में नियमित परेड का न होना है। कहते हैं कि सही सेहत हजार नैमत के बराबर है,लेकिन पुलिस महकमे में ऐसा नहीं है। खाकी वर्दी वाले शायद इस कहावत को सही नहीं मानते। शायद यही वजह है कि जरुरत के हिसाब से जिन पुलिस कर्मियों को हर वक्त चुस्त.दुरुस्त रहना चाहिए वह उतने ही थकाऊ होते जा रहे हैं। जी हां,यहां बात हो रही है पुलिस महकमे की फिटनेस की। तमाम सिपाही व दरोगा ऐसे हैं जो अपनी फिटनेस पर ध्यान नहीं दे रहे। नतीजतन उनकी तोंद निकल आई है। तोंद भी ऐसी अगर एक बार बैठ गए तो बैठ गए और खड़े हो गए तो खड़े हो गए। दौडना तो उनके लिए लोहे के चने चबाना है। एक किमी,की दौड़ लगाने में होश उड़ जाएंगे। सांस उखडना तो लाजमी है। जिले में भी तैनात 30 फीसदी पुलिस कर्मी ऐसे हैं जिनका शरीर फिटनेस के लिहाज से उनका साथ नहीं दे रहा। कई एसओ ऐसे हैं जिनकी तोंद उनके लिए परेशानी का सबब बन रही है। अगर विभाग के दफ्तरों में नजर दौड़ाएं तो सुबह से शाम तक कुर्सी पर बैठने वाले दरोगा व सिपाही भी तोंदू हो गए हैं। प्रत्येक थाने में लगातार बैठ कर काम करने वाले पुलिस कर्मियों की सेहत भी फिटनेस के मामले में साथ नहीं दे रही। इसकी प्रमुख वजह थानों व पुलिस लाइन में नियमित परेड न होना है। विभागीय सूत्र बताते है कि थानों में तो नहीं लेकिन पुलिस लाइन में नियमित परेड होती है, लेकिन कई बार पुलिस कर्मी परेड में शामिल होने से कतराते हैं। यही वजह है कि दरोगा व सिपाही बेडौल हो रहे हैं। जबकि कुछ वर्ष पहले तक तो थानों व पुलिस विभाग के सभी दफ्तरों में बेडौल शरीर वाले पुलिस कर्मी ही देखने को मिलते थे लेकिन नए बैच के आने से छरहरे सिपाहियों व दरोगाओं की फौज जरूर दिखाई देने लगी। इतना ही नहीं नए सिपाही फिटनेस पर भी ध्यान दे रहे हैं। वही बेडौल शरीर यानि चर्बी का बढना। इससे पुलिस कर्मी बीमार भी हो रहे हैं। डायबिटीज होना तो आम बात है तथा सांस फूलना भी अधिकांश पुलिस कर्मियों की दिक्कत है। वर्तमान में जिले में तैनात अधिकांश सिपाहियों की हालत ऐसी ही है।