मोहम्मद जमाल
राणा प्रताप कालेज अग्रेजी विभाग में संगोष्ठी का आयोजन
सुल्तानपुर राणा प्रताप पी जी कालेज में अग्रेजी विभाग नें एक गोष्ठी का आयोजन किया। सेमिनार का विषय 'कॉन्ट्रिब्यूशन ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर टू इंडियन इंग्लिश लिटरेचर ' था। अग्रेजी विभागाध्यक्षा प्रो निशा सिंह ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर एक किंवदंती थे और रहेंगे। भारतीय अंग्रेजी साहित्य भारत के लेखकों के कार्यों के उस हिस्से से संबंधित है, जिन्होंने अंग्रेजी भाषा में लिखा था, लेकिन उनकी मूल भाषाएं भारत की क्षेत्रीय या स्वदेशी भाषा में से एक हो सकती हैं। भारतीय अंग्रेजी साहित्य का विकास धीरे-धीरे 1608 में हुआ जब मुगलों के दरबार में सम्राट जहांगीर ने ब्रिटिश नौसेना अभियान हेक्टर के कमांडर कैप्टन विलियम हॉकिन्स का वीरतापूर्वक स्वागत किया था। हालांकि हम जानते हैं कि उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, फिर भी भारतीयों द्वारा अंग्रेजी को विभिन्न धर्मों के विभिन्न लोगों के बीच संचार के एक महत्वपूर्ण साधन के साथ समझ और जागरूकता, शिक्षा और साहित्यिक अभिव्यक्ति की भाषा के रूप में अपनाया गया था। टैगोर ने तीन भाषाओं हिंदी, बंगाली और अंग्रेजी में कविताएं, लघु कथाएं, उपन्यास लिखे हैं और उनके कई कार्यों का अनुवाद भी किया गया है। रवींद्रनाथ टैगोर के उल्लेखनीय कार्य गीतांजलि, गोरा, घरे-बैरे, जन गण मन, रणबिंद्र संगीत, अमर शोनार बांग्ला, अन्य कार्य भी थे। उनके जीवन में प्राप्त सबसे बड़े पुरस्कारों में से एक "साहित्य में नोबेल पुरस्कार" था। अपने विचारों, भावनाओं और संवेदनाओं को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम मातृभाषा है। इसी के जरिये हम अपनी बात को सहजता और सुगमता से दूसरों तक पहुंचा पाते हैं। कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने ज्यादा लेखन बांग्ला में किया लेकिन उनकी लोकप्रियता हिंदी और अग्रेजी में कम नहीं है। गुरुदेव को अग्रेजी साहित्य में विभिन्न तरह से न केवल याद किया जाता है बल्कि उनकी कविताएं व विचार अब अग्रेजी में भी उपलब्ध हैं। गुरुदेव ने बांग्ला साहित्य के ज़रिये भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान डाली। वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। भारत का राष्ट्रगान जन-गण-मन और बांग्लादेश का राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएं हैं। ईश्वर और इंसान के बीच मौजूद आदि संबंध उनकी रचनाओं में विभिन्न रूपों में उभर कर आता है। साहित्य की शायद ही ऐसी कोई विधा है, जिनमें उनकी रचना न हो - गान, कविता, उपन्यास, कथा, नाटक, प्रबंध, शिल्पकला, सभी विधाओं में उनकी रचनाएं विश्वविख्यात हैं। उनकी रचनाओं में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कई किताबों का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी रचनाएं पूरी दुनिया में फैली और मशहूर हुईं। भारतीय साहित्य के लिये उनका योगदान बहुत बड़ा और अविस्मरणीय है। उनकी रचनात्मक लेखन, चाहे वो कविता या कहानी के रुप में हों, आज भी उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता। शायद वो पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने असरदार लेखन से पूरब और पश्चिम के बीच की दूरी को कम कर दिया। असिस्टेंट प्रोफेसर ज्योति सक्सेना ने संगोष्ठी में विचार रखते हैं कहा कि शांतिनिकेतन में प्रकृति की गोद में पेड़ों, बगीचों और एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। टैगोर ने यहां विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। शांतिनिकेतन में टैगोर ने अपनी कई साहित्यिक कृतियां लिखीं थीं और यहां मौजूद उनका घर ऐतिहासिक महत्व का है। रविंद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी ज़्यादातर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के कई रंग पेश करते हैं। अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी। अग्रेजी साहित्य को टैगोर को बड़ी देन हैं। पाठकों में टैगोर बहुत लोकप्रिय हैं। संगोष्ठी में बीएड विभाग के डॉ संतोष अंश ने कहा कि रविंद्रनाथ टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से ऊंचे स्थान पर रखते थे। गुरुदेव ने कहा था, "जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।" टैगोर गांधी जी का बहुत सम्मान करते थे। लेकिन वे उनसे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विचारों की अदला बदली, तर्कशक्ति जैसे विषयों पर अलग राय रखते थे। हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज़्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था। गुरुदेव ने बांग्ला साहित्य के ज़रिये भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान डाली। ईश्वर और इंसान के बीच मौजूद आदि संबंध उनकी रचनाओं में विभिन्न रूपों में उभर कर आता है। गीतिमाल्य, कथा कहानी, शिशु, उन्होंने कई किताबों का अनुवाद अंग्रेज़ी में किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी रचनाएं पूरी दुनिया में फैली और मशहूर हुईं। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी ज़्यादातर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के कई रंग पेश करते हैं। अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी।इस संगोष्टी में डॉ अखिलेश सिंह ,डॉ रंजना पटेल,डॉ विभा सिंह,डॉ नीतू सिंह, डॉ बीना सिंह, शिल्पी सिंह,एकता सिंह, के साथ स्नातक अंग्रेज़ी के सभी विद्यार्थी मौजूद थे।