देश

national

प्राचीन धरोहर संरक्षण एवं पर्यटन विकास के संकल्प के साथ विश्व विरासत सप्ताह का समापन

Saturday, November 26, 2022

/ by Today Warta



इन्द्रपाल सिंह प्रिइन्द्र

आजादी के पुरोधाओं के वंशजों को इन्टैक ने किया सम्मानित

ललितपुर। इन्टैक ललितपुर चैप्टर, उ.प्र. पुरातत्व विभाग झांसी एवं बुन्देलखण्ड इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व शोध समिति के संयुक्त तत्वावधान में विरासत सप्ताह का समापन नेहरू महाविद्यालय के तुलसी सभागार में हुआ। मुख्य अतिथि उ.प्र. के राज्यमंत्री हरगोविन्द कुशवाहा, विशिष्ट अतिथि प्रबंधक प्रदीप चौबे, प्राचार्य प्रो. राकेश नारायण द्विवेदी ने दीप प्रज्ज्वलन किया। इस अवसर पर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के वंशज श्रीमंत प्रभाकर पेशवे, 1857 की क्रांति के योद्धा महाराज मर्दन सिंह के वंशज कुं. उदयवीर सिंह बुंदेला, कु. शैलेन्द्र सिंह बुंदेला एवं 1842 में क्रांति की अलख जगाने वाले राव मधुकर शाह बुंदेला के वंशज कु. हरेन्द्र सिंह बुंदेला व कु. विक्रम सिंह बुंदेला को इन्टैक द्वारा सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में देश की प्राचीन विरासत पर आधारित डाक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई गई, जिसकी भरपूर सराहना की गई। मुख्य अतिथि ने कहा कि बुंदेलखण्ड की संस्कृति देश की सबसे प्राचीन संस्कृति है जहाँ पर पुराणों, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों की रचना हुई। यहाँ की सभ्यता सबसे प्राचीन सभ्यता है जिसने पूरे देश का मार्ग प्राचीनकाल से प्रशस़्त किया। भगवान राम ने वनवास के 12 वर्ष चित्रकूट में व्यतीत किए एवं अजेय कालिंजर के किले में भगवान शंकर ने विष का शमन किया। यहाँ वीर हरदौल को आज भी पूजा जाता है। किसी कवि ने कहा है कि ''तन त्यागो-त्यागों नहीं परसेवा का कौल, गावंन-गावंन पुज रहे लला हरदौलÓÓ। महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता आज विश्व विख्यात है। ना सिर्फ महरानी लक्ष्मीबाई बल्कि झलकारी बाई जैसी वीरंागनाओं ने इस भूमि को गौरवान्वित किया है। प्रबंधक ने कहा कि यह महाविद्यालय के लिए गौरव का क्षण है। यह मंच ऐतिहासिक मंच है जहाँ इतनी महान विभूतियां एक साथ विराजमान है। जनपद ललितपुर में ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन स्थलों के साथ-साथ प्राकृतिक सम्पदाओं से भरा पड़ा है। पूर्व क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डा. एस.के.दुबे, प्राचार्य प्रो. राकेश नारायण ने कहा कि यदि ललितपुर नहीं देखा तो कुछ भी नहीं देखा। यहाँ उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक धरोहर एवं पर्यटन क्षेत्र मौजूद हैं। यहाँ पर पर्यटन की अपार संभावनायें हैं। इन्टैक संयोजक संतोष कुमार शर्मा ने कहा कि जिन राजाओं ने मुगलों और अंग्रेजों को चापलूसी की वे आजाद भारत में अपने किले, महलों और अपार धन संपदा के साथ आज भी मौज कर रहे हैं। जिन देश भक्त राजाओं ने अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष कर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया आज उनके वंशज बदहाली का जीवन जीने को मजबूर हैं। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के वंश परम्परा के कीर्तिवाहक श्रीमंत प्रभाकर पेशवे ने कहा कि सिंधु से हिमालय तक पेशवाओं का कब्जा था। उन्होंने कहा कि हमें गर्व है कि हमारे पूर्वजों ने राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हुए बलिदान दिया। मात्र 29 वर्ष की आयु में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति को प्राप्त किया। उस समय उनके पुत्र दामोदर राव लगभग 6 वर्ष के थे और वे युद्ध के दौरान घायल रानी के घांवों को अपने नन्हें हाथों से बंद करने का बार-बार प्रयास कर रहे थे। इसके बाद दामोदर राव व उनके वंशजों ने कई पीढिय़ों तक अपना जीवन बड़े ही कष्टों में गुजारा। यहाँ की योद्धाओं के पराक्रम और कौशल की वजह से अंग्रेजों का सबसे अधिक विरोध बुंदेलखण्ड में दर्ज किया गया, जिसको उनकी पीढ़ी आज भी याद करती है। उन्होंने कहा कि क्या हमारे देश के लिए यह शर्म की बात नहीं है कि हम रानी के वंशजों को झाँसी का किला देखने के लिए टिकिट लेनी पड़ती है। इस दौरान साहित्यकार बाबूलाल द्विवेदी, क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी मनोज कुमार यादव, डा. दीपक चौबे, पत्रकार मनोज पुरोहित, डा.सुधाकर उपाध्याय, डा.संजीव कुमार शर्मा, डा.राजेश तिवारी, डा.दीपक पाठक, डा.प्रीति पाठक, डा.ओ.पी.चौधरी, डा.शैलेन्द्र सिंह चौहान, डा. वर्षा साहू, डा.अभिलाषा साहू, डा.अमित सोनी, डा. रिचाराज सक्सेना, कविता पैजवार, श्वेता आनंद, डा.पराग अग्रवाल, डा.जगवीर सिंह, विवेक पाराशर, फहीम बख्श, धु्रव किलेदार, अंकित चौबे, रमेश पाल, संजय शर्मा, श्रीपत सिंह, भरत सिंह, भगवती, हरदयाल, लक्ष्मी सोनी, कमलेश, राकेश प्रजापति, कामता प्रसाद शर्मा आदि उपस्थित रहे।

Don't Miss
© all rights reserved
Managed by 'Todat Warta'