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दूध पीने वालों के लिए आक्सीटोसिन स्वीट प्वायजन

Thursday, November 24, 2022

/ by Today Warta



राकेश केशरी

कौशाम्बी। क्या आपने कभी सोचा है कि अधिक आय के चक्कर में अपने पशु को बांझ बना रहे हैं। पशु का दूध सेवन करने वाले आपके अपने भी तमाम गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। शायद नहीं, तभी तो प्रतिबंधित आक्सीटोसिन का खुलेआम प्रयोग हो रहा है। वैसे इसके पीछे जानकारी का अभाव भी एक बड़ी वजह है। पशुपालन वैज्ञानिकों का मानना है कि आक्सीटोसिन के प्रयोग से दुधारु पशु को असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता है। अधिकारी मानते हैं कि अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए इसका प्रयोग करना पशु क्रूरता अधिनियम की श्रेणी में आता है। पकड़े जाने पर सजा भी हो सकती है। इतने के बाद भी आक्सीटोसिन का खुलेआम प्रयोग हो रहा है, आखिर क्यों। प्रथम दृष्टया इसका प्रमुख कारण विभाग की लापरवाही माना जा सकता है क्योंकि इस पर रोक जरूर लगी है,लेकिन इसकी बिक्री रोकने के लिए विभागीय स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। कृषि वैज्ञानिको के मुताबिक पशुपालकों में यह भ्रांति है कि आक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाने से दूध बढ़ जाता है। कभी-कभी लोग आसानी से थन में दूध न उतरने पर इसका प्रयोग करते हैं, जो सरासर गलत है। आक्सीटोसिन एक प्रकार का हारमोन है, जो मस्तिष्क की ग्रंथि हाइपोथैलमस में बनता है और पीटीट्यूरी ग्रंथि में इकठ्ठा होता है। पशु के शरीर की आवश्यकता के अनुसार यह खून के माध्यम से विभिन्न अंगों में पहुंचता है। इस हारमोन का प्रयोग पशुओं का प्रसव कराने में उस स्थिति में किया जाता है, जब बच्चा आसानी से पैदा नहीं होता। इसके अलावा इसका कोई उपयोग नहीं है। दूध उतारने के लिए जब पशुपालक इसका प्रयोग करते हैं तो तमाम दुष्परिणाम उन्हें भुगतना पड़ता है। पशुओं के लिए तो यह खतरनाक है ही उसका दूध पीने वालों के लिए भी यह जहर के समान है इसलिए आक्सीटोसिन का दूध उतारने के लिए कभी भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। आक्सीटोसिन इंजेक्शन का प्रभाव पशु व मनुष्य दोनों पर पड़ता है। इंजेक्शन के बार-बार प्रयोग से पशु की प्रजनन क्षमता कम होती है और वह बांझ हो जाता है। इंजेक्शन लगने पर कुछ दिन पशु का दूध बढ़ा हुआ प्रतीत होता है। धीरे-धीरे इंजेक्शन का प्रभाव जब पशु पर कम हो जाता है फिर पशु पूरा दूध नहीं देता। पशु के दूध देने का समय भी घट जाता है। जो मनुष्य इस दूध का सेवन करता है उसकी आंख की रोशनी कम हो जाती है। सुनने की क्षमता भी घटती है। बच्चों में पीलिया व दस्त का खतरा बना रहता है तथा थकान का अनुभव होता है। 


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