इन्द्रपाल सिंह प्रिइन्द्र
मोर हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा : ममता बाल्मीकि
ललितपुर। विश्व मयूर दिवस पर मानव ऑर्गनाइजेशन और भारतीय जैव विविधता संरक्षण संस्थान के संयुक्त तत्वाधान प्राथमिक विद्यालय लक्ष्मीपुरा में मनाया गया। इस दौरान प्राथमिक विद्यालय लक्ष्मीपुरा की प्रधानाध्यापिका ने कहा की कुछ वक्त से राष्ट्रीय पक्षी मोर के प्रति काफी उदासीनता नजर आ रही है जिसके कारण मोर की सुरक्षा खतरे में आने लगी हैं। विश्व मयूर दिवस मनाने का विचार राष्ट्रीय पक्षी के संरक्षण का संदेश देना है और राष्ट्रीय पक्षी की अतुलनीय सुंदरता की सराहना करने के लिए उत्सव के दिन को भी चिह्नित करना है। जिसे हम दशकों से उपेक्षित कर रहे हैं। यह उत्सव पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण पक्षी के संरक्षण में मदद करेगा जो हमारे देश का गौरव है। गौरैया बचाओ अभियान के संयोजक अधिवक्ता पुष्पेन्द्र सिंह चौहान ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, किसी भी प्रजाति के अस्तित्व का कोई आजीवन आश्वासन नहीं है, चाहे वह गिद्ध हो या घरेलू गौरैया जो हमारे आस-पास सबसे आम पक्षी थे। यद्यपि 2022 इसके उत्सव का पहला वर्ष होगा, हमें उम्मीद है कि विश्व मयूर दिवस दुनिया भर में बड़े पैमाने पर मनाया जा रहा है। वन्यजीव अधिनियम के अनुसार प्राकृतिक रूप से गिरे हुए पँखो को इका करने और रखने की अनुमति थी किंतु बाजार में मांग होने के चलते मोर को मार कर पंख एकत्रित किए जाते है साथ ही अन्य अंगों को बेचा जाता है। अपराध छुपाने के लिए शिकारियों ने पँखो को नीचे से काट कर बेचना शुरू कर दिया, और इस तरह पंख की उत्पत्ति की पहचान करना असंभव हो गया है। केमिकल द्वारा भी मोर पंखों को साफ कर प्राकृतिक दिखने हेतु तैयार कर लिए जाते है। जबकि असल में मोर के पँखो का गिरना अगस्त के आखरी सप्ताह या सितंबर की शुरुआत में शुरू होता है। पहले सप्ताह में पंख गिरने की दर बहुत कम होती है, अर्थात 3-6 प्रति दिन तक। दूसरे सप्ताह में बढ़ जाती है और सप्ताह मे 6-21 पंख प्रतिदिन गिरने लगते है. यह चौथे सप्ताह तक जारी रहता है। पांचवें और छठे सप्ताह पंख गिरने का क्रम फिर से 2-4 प्रतिदिन हो जाता है। आठवें सप्ताह में छोटे पर अनियमित रूप से गिरते रहते हैं। फरवरी में मोर पंख फिर से विकसित होने लगते है। प्राकृतिक तरीके से गिरे हुए मोर के पंखों को इका करना एक बहुत ही कठिन और समय लेने वाला कार्य है। जो असामान्य संख्या मे मोर के पंख हम बाजार मे देखते है वो निश्चित रूप से मोरो को मार कर लाए जाते है। कार्यक्रम के दौरान नन्हे बच्चों ने पूरे अंतर्मन से मोर के चित्रों में रंग भरा व नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए, कविता का गायन किया। सचिन जैन बॉस ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सबका आभार व्यक्त किया। इस दौरान उर्वशी गुप्ता, अमित लखेरा, डा.विकास गुप्ता जीत, बलराम कुशवाहा, कवि शैलेंद्र कुमार, ईशान, महक, भूमि, लवली, हिमांशी, आयत, अंशिका, नमन, निदा, शिप्रा, शिवन्या आदि बहुत सारे बच्चे उपस्थित रहे।