राकेश केसरी
कौशाम्बी। आज चारों तरफ जहां देखिये वहां कानफाड़ू आवाज में डीजे बजता हुआ सुनाई पड़ता है। बात चाहे शादी.विवाह की हो,तीज त्योहार की हो अथवा किसी भी प्रकार की उत्सव मनाने की। ऐसा लगता है मानो कि लोगों को कम आवाज वाले संगीत पसंद ही नहीं खासकर युवाओं को। हर तरफ डीजे की तेज आवाज पर नाचते,थिरकते दिखाई पड़ते है। शायद उन्हे नहीं पता कि यही मस्ती उनके जीवन में कहीं अंधेरा न कर दे। चिकित्सकों व विशेषज्ञों की माने तो डीजे की बहुत अधिक डेसिबल वाला ध्वनि लोगों को जहां बहरा बना रहा है,वहीं नजदीक से सुनने वाले तेजी से दिल के मरीज भी बन रहे है। दरअसल शादी.विवाह के मौकों पर डांस करने के लिए फ्लोर डीजे का प्रयोग किया जाता था,जिसे मोबाइल डीजे की शक्ल दे दिया गया। अब चार पहिया वाहन पर बड़े.बड़े कई स्पीकर लगाकर लैपटॉप अथवा कम्प्यूटर द्वारा डिजिटल साउंड बजाया जाता हैं। एक साथ कई स्पीकरों से निकलने वाली तेज फ्रिक्वेंसी तथा अत्यधिक डेसिबल की ध्वनि सेहत पर बहुत खराब असर डालती है। एक तो बहुत तेज आवाज होने के कारण यह हमारे कानों के सुनने की क्षमता से अधिक होती है दूसरे बहुत नजदीक से सुनने वाले सहम जाते है। इस संबंध में कान,नाक,गला रोग विशेषज्ञ डा0 रोहित शर्मा बताते हैं कि डीजे के इस्तेमाल से निश्चित रूप से सेहत पर असर पड़ रहा है। क्योंकि मनुष्य के कानों में सुनने की क्षमता अधिक 60 डेसिबल तक होती है। जबकि डीजे साउंड से तो कभी 150 से 200 डेसिबल तक की ध्वनि निकलती है। लगातार आठ घंटे इस फ्रिक्वेंसी में रहे तो वह निश्चित रूप से बहरा होने लगेगा। इसलिए डीजे साउंड को अधिकतम 60 डेसिबल तक ही बजाना चाहिए। वहीं हृदय रोग विशेषज्ञ डा0 संदीप केशरवानी बताते है कि डीजे स्पीकरों के समीप जाकर खड़ा होने पर ऐसा लगता है कि उसका असर सीधे दिल पर हो रहा है। तेज आवाज के कारण घबराहट,मानसिक तनाव,ब्लड प्रेशर का उतार.चढ़ाव सहित दिल संबंधित कई बीमारियां हो सकती है।

Today Warta