इन्द्रपाल सिंह प्रिइन्द्र
धर्म संस्कृति के लिए विद्वान हुए कटिबद्ध,कहा गुरूओं का आदेश सर्वोपरि
ललितपुर। राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी में मुनिश्री सुधासागर महाराज ने कहा कि कषायों को वही जीत सकता जिसे अनुभव में आए कि मैं कसाई हॅू। पापो का प्रक्षालन वही कर सकता जो अपने को पापी माने। मुनि श्री ने कर्म की प्रधानता बताते हुए कहा जीवन में हम दुखी इस लिए हो रहे कि हमने धर्म के कार्यो की तो सीमा बांधी है पर पाप करने की कोई सीमा नहीं बांधी। उन्होने कहा जिस प्रकार हम पूजन की थाली के शुद्ध होने का ध्यान रखते हैं उसी तरह भोजन की थाली भी शुद्ध हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। अखिल भारतीय जैन विद्वत परिषद के अधिवेशन में मुनिश्री ने विद्वानों को धर्म संस्कृति के संरक्षण के उदेश्य को जनज न तक पहुचाने के लिए कहा वहीं उन्होने कहा प्रत्येक विद्वान को स्वाध्याय और प्रवचन का सतत अभ्यास करने की सीख दी। उन्होने जैन स्तोत्रों को जैन धर्म का प्राण बताते हुए कहा इनको जीवन में उतारने में ही प्रभु की सच्ची भक्ति है जिसका अनुसरण प्रत्येक श्रावक को करना चाहिए। अधिवेशन का शुभारम्भ मुनि सुधासागर महाराज एवं मुनि पूज्य सागर महाराज एलक धैय्र्रसागर महाराज क्षुल्लक गम्भीर सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में आचार्य श्री के चित्र अनावरण दीपप्रज्जवलन से विद्वत परिषद के पदाधिकारियों ने किया।