गाजियाबाद। मुठभेड़ बताकर की गई फर्नीचर कारीगर राजाराम की हत्या के मामले में सबसे अहम गवाही उसकी पत्नी संतोष कुमारी की साबित हुई। संतोष ने पहले जिला अदालत में इंसाफ की लड़ाई लड़ीं। वहां कामयाबी नहीं मिली तो हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वह अपने बयान पर कायम रहीं। उन्होंने सीबीआई कोर्ट को बताया कि पुलिस पति को उनके सामने उठाकर ले गई थी। इसके बाद फोरेंसिक जांच में पता चला कि राजाराम को गोली नजदीक से मारी गई थी। पुलिस यह साबित नहीं कर सकी कि राजाराम ने भी गोली चलाई थी। अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता ने बताया कि संतोष पहले थाने गईं। वहां पुलिस ने तहरीर लेने से इनकार कर दिया। उनके साथ अभद्रता की। इस पर वह जिला अदालत में गईं। वहां अर्जी खारिज हो गई लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद वह हाईकोर्ट पहुंचीं। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सीबीआई जांच के आदेश दिए। 2007 में जांच शुरू कर सीबीआई ने 2009 में सिढपुरा के तत्कालीन थाना प्रभारी पवन कुमार सिंह सहित 10 पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। सुनवाई के दौरान आरोपी दरोगा अजंट सिंह की मृत्यु हो गई। नौ पुलिसकर्मी हत्या और साक्ष्य मिटाने के दोषी सिद्ध हुए। सीबीआई ने जांच में लिखा कि गवाह राजप्रताप सिंह ने देखा था कि राजाराम को सरकारी जीप से घुमारी रोड पर सुनहरा गांव के पास ले जा रहे थे। उस जीप को मोहकम सिंह चला रहा था। तत्कालीन उपनिरीक्षक अजंट सिंह ने 18 अगस्त को बनाई फर्द भी गलत साबित हुई थी।