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पुल के इंतजार में बीते सात दशक: गांव और शहर के बीच की कड़ी बना बांस का पुल, दो किमी का सफर 200 मीटर में पूरा

Tuesday, January 24, 2023

/ by Today Warta



शहडोल जिले की विशिष्ट पंचायत का एक गांव बांस के पुल के सहारे शहर से जुड़ा है। कई बार पुल की मांग पर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बारिश में दिक्कत और बढ़ जाती है। 

गांव को शहर से जोड़ने के लिए बांस का पुल आसरा है। 

मध्यप्रदेश का एक गांव आज भी अपने पहले पुल के लिए तरस रहा है। गांव और शहर के बीच टांकी नाला है, जिस पर बांस का कच्चा पुल यहां के लोगों के जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है। ये पुल शहर से गांव की दूरी सिर्फ दो मीटर में पूरी कर देता है। अगर पुल का इस्तेमाल न किया जाए तो ग्रामीणों को दो किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है। लोगों ने कई बार सरकार से कच्चे पुल को पक्के पुल में बदलने की मांग की है।)

शहडोल। संभागीय मुख्यालय से सटे जनपद पंचायत सोहागपुर के ग्राम ढाप टोला की। यहां के बाशिंदे आजादी के बाद से ही मूलभूत सुविधाओं के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। यहां से शहर चंद कदमों की दूरी पर है, पर नाला बाधक बना हुआ है। ग्रामीणों ने जुगाड़ कर बांस का पुल बनाया है, जिससे पूरा गांव शहर आना-जाना करता है। बांस का पुल कब टूट जाए कोई भरोसा नहीं पर मजबूरी ऐसी कि जान जोखिम में डालकर उसे पार करना पड़ता है। बारिश में स्थिति बिगड़ जाती है। ऐसा नहीं कि यही एकमात्र रास्ता हो शहर जाने का। एक और रास्ता है जो दो किलोमीटर घूमकर शहर को जाता है। ग्रामीण इतनी दूरी से बचने के लिए बांस के पुल का सहारा ले रहे हैं।  

कई बार मांग की, लेकिन सुनता कोई नहीं 

ग्रामीणों का कहना है कि हालकि वह पुल कभी भी टूट सकता है, फिर भी कम दूरी तय करने के कारण जान जोखिम में डालकर उक्त पुल का उपयोग करना मजबूरी है। कई बार प्रशासन के आला अधिकारियों से टांकी नाला के ऊपर स्थाई पुल के निर्माण की मांग की गई, लेकिन आज तक किसी ने इस ओर ध्यान नही दिया। ग्रामीणों का कहना है कि सर्वाधिक दिक्कत बारिश के दिनों में होती है जब बांस से निर्मित पुल के ऊपर तक पानी आ जाता है। ऐसे में शहर पहुंचने के लिए फिर 2 सौ मीटर की जगह 2 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करनी पड़ती है।  

 विशिष्ट ग्राम पंचायत में बसा है गांव 

ग्रामवासियों का कहना है कि प्रदेश में पंचायती राज की स्थापना के बाद ऐसा आभास हुआ था कि अब गांवों की तस्वीर बदल जाएगी। लेकिन स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। जबकि कोटमा को विशिष्ट ग्राम पंचायत का दर्जा प्राप्त है। जब संभागीय मुख्यालय और शहर की सीमा से लगे गांव की इस प्रकार अनदेखी की जा रही है तो फिर दूर दराज के ग्रामों में विकास की रफ्तार क्या होगी, इसका अंदाज स्वयं लगाया जा सकता है।

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