राकेश केशरी
कौशाम्बी। बचपन बचाओ योजनाओं व बालश्रम उन्मूलन आदि अभियान के माध्यम से बालश्रम रोकने के चाहे जितने भी दावे प्रतिदावे किए जाएं लेकिन यहां सैकड़ों.हजारों बच्चों का बचपन आज भी कूड़े के ढेर व चाय की दुकानों पर नजर आता है। सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत घुमंतु परिवारों व पढ़ाई से वंचित बच्चों को शिक्षित करने के लिए किए जा रहे तमाम प्रयास भी औंधे मुंह ही दिख रहा है। हालात है कि बालश्रम उन्मूलन के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयास व कार्य यहां निरर्थक ही साबित हो रहे हैं। इसका प्रमाण क्षेत्र के कूड़ों के ढेर पर सुबह से शाम तक स्पष्ट देखा जा सकता है। जगह.जगह ये छोटे बच्चे हाथों में प्लास्टिक की बोरी व डलिया आदि लेकर कूड़ों के बीच अपनी जिंदगी का आधार तलाशते मिल जाएंगे। इन्हें न तो अपनी पढ़ाई की चिंता है और नहीं अपने भविष्य की। उन्हें तो बस दो जून की रोटी की चिंता है जो कूड़े से प्राप्त होने की उम्मीद है। शासन द्वारा लाखों.करोड़ों रुपये बचपन बचाने व बालश्रम उन्मूलन के लिए बहाया जाता है लेकिन यह किसी भी दष्टि से परिलक्षित होते नहीं दिख रहा है। इससे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि शिक्षा के क्षेत्र में कितनी सार्थक पहल हो रही है।