राकेश केशरी
कौशाम्बी। पक्षियों का बसेरा बाग,बगीचे व घने जंगलों में होता है। वहीं अपना घोसला बनाकर रहते हैं और दिन भर स्वछंद विचरण करने के बाद दूर.दूर तक उड़ान भरकर शाम को अपने घोसलों में वापस आ जाते हैं। इन्हीं पक्षियों में एक ऐसा भी पक्षी है जो अधिकांश गांव.देहात में ही पाये जाते हैं गांवों में लोग इसको वनमुर्गी के नाम से जानते हैं। गायब हुए गिद्ध व गुम हो रही गौरैया की तरह यह पक्षी भी किस्सों कहानियों में सिमटने की स्थिति में है। इस जीव की संख्या में कमी न तो मांस.चमड़े की लालच में शिकार से आयी है न ही इंसान को नुकसान पहुंचाने के कारण की गई हत्याओं से। यह बेगुनाह तो बस इंसान की लापरवाह तरक्की की कीमत चुका रहे है अपनी जान देकर। घनी आबादी के बीच स्थित अनेक मकानों से निकले गंदे पानी,वर्षा से भरे जल में प्राय: विचरण करने वाली पानी के ऊपर समतल भूमि की तरह दौड़कर उडने वाली गांव देहात की भाषा में कही जाने वाली वनमुर्गी, विलुप्त होती जा रही है वैसे तो इसका नाम कैमा है। कहीं.कहीं इसका खैमा या जल बोदरी नाम भी प्रसिद्ध है। यह पक्षी हमारे यहां भी बारह मासी चिडिया है। गिरोह में रहने वाली यह चिडिया ताल,तलैया,पोखरे,नदी व गांव के गड़हा में घास फु स का बड़ा घोंसला बनाकर रहती है। प्रमुख रूप से इसका भोजन कीड़े.मकोड़े है। इस पक्षी की प्रदूषण मुक्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। गंदे पानी में चारों तरफ दौड़ाकर कीड़े.मकौड़े को अपना निवाला बनाती है और पानी के अंदर डूबकर भी कीड़े को निगल जाती है। पैरों की अंगुलियां एक दूसरे से झिल्लीनुमा चादर की तरह जुड़ी रहती है जिससे पानी व झिल्ली के बीच पृष्ठ तनाव के कारण पानी की सतह पर तेजी से दौड़ भी लगाती है। विलुप्त होने के कारण यह महत्वपूर्ण पक्षी अब दो.चार की संख्या में कहीं.कहीं दिखाई पड़ रही हैं। वैसे तो इसके घटने के पीछे कम बरसात का होना व अतिक्रमण का शिकार होते गड्ढे नदी नालों के साथ ही कीट नाशकों का प्रयोग जिम्मेदार है। सवाल यह है कि ऐसी क्या बात हुई कि बारहों महीनों हमारे साथ रहने वाले गगन से लेकर गड़ही तक के पक्षी विलुप्त होते जा रहे हैं। यह दर्द सिर्फ वनमुर्गी की नहीं है। गिद्ध,गोरैया,तितली व बेशुमार जीवधारी जीवन शैली में आए उस बदलाव का शिकार हुए हैं जिसके जिम्मेदार इंसान ही है। आज अगर बंदर शहरों में लोगों का जीना मुहाल कर रहे है तो कारण यही है कि इंसान ने जंगलों को काटकर उनका घर और खाना छिन लिया है। अब भी बहुत देर नहीं हुई है सबको समझना होगा कि दुनिया सबकी साझी है और कुदरत की निगाह में हर जान की बराबर कीमत है। इसके पहले कि इन मासूमों की जान बचाने के लिए कुदरत अपना तरीका अपनाएं इंसान को चेत जाने में ही समझदारी है।