इन्द्रपाल सिंह'प्रिइन्द्र
ललितपुर। महाकवि और साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की जयंती पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि सामंतीय श्रंखलाओं और रूढियों की दासता के विरुद्ध जिस प्रकार मध्ययुगीन संत काव्य का चरम उत्कर्ष गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस में अपने ऊपर लदी हुई चट्टान को हटाने वाले झरने के रूप में फूट पडा था, ठीक वैसे ही वर्तमान युग में साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय जनता के संघर्ष, देश की स्वाधीनता एवं जनतंत्र के माध्यम से विषमता को हटाकर समरसता लाने वाले रसमय स्वर की जैसी अभिव्यक्ति युग के कवि जयशंकर प्रसादजी के महाकाव्य कामायनी में दिखाई देती है, वैसी सकारात्मकता अन्यत्र नहीं है। छायावाद के प्रवर्तक कवि, कालीदास और शेक्सपियर की परम्परा के सशक्त नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार और समालोचक प्रसाद जी की जयन्ती पर उन्हें शत शत नमन करते हैं। प्रो.शर्मा ने आगे कहा कि प्रसादजी के आँसू काव्य में कहा गया है कि यदि जीवन में सुख ही सुख हो तो सुख की अधिकता से जीवन सूख जायेगा। जैसे एक चुटकी नमक मिलाने से सूखा आटा सलौना बनकर खाने लायक बन जाता है, वैसे ही नमकीन आँसू भी जीवन को पुरुषार्थ मय बना देते हैं। प्रसादजी महसूस करते थे कि संसार में सबसे सुखी वही व्यक्ति होता है जो डबडबाई आँखों के एक-एक आँसूं पोंछ डालने के लिए अपनी अंतिम साँस तक बेचैन रहता है। कामायनी महाकाव्य में यही उद्गार उन्होंने व्यक्त किए हैं। औरों को हँसते देखो मनु, हँसो!और सुख पाओ, अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ। वे पुष्टि करते थे कि वीरता का ही स्थायी भाव उत्साह है, परन्तु वीरता के अभाव में उसके पैरों से छलछंद की धूल उड़ती है जैसे अपने बुन्देलखण्ड में कहावत है कि सामने वाले अत्याचारी के सिर पर अब हम जमीन में गड़ा हुआ पत्थर उखाड़कर तुरन्त मार देगें। साहित्यसृष्टा जयशंकर प्रसाद के नाटक चन्द्रगुप्त में यूनानी सेल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया का चन्द्रगुप्त मौर्य से विवाह कराने में राष्ट्र निर्माता आचार्य चाणक्य आगे से भी आगे रहे। कार्नेलिया सदैव भारत को अपनी जन्मभूमि मानकर गाती है। अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान पथिक को मिलता एक सहारा।