प्रदीप पाल
बदायूँ । जिला अस्पताल अपनी बदहाली के ऑशु वहा रहा है एक बार फिर अपनी मृतप्राय हो चुकी संवेदनशीलता को लेकर मीडिया में चर्चा का केेन्द्र बन गया है। हांलाकि जिलाधिकारी के हस्तक्षेप के बाद हरकत में आए अस्पताल प्रशासन ने मामले को बेहतर बनाने की कोशिश तो की मगर सवाल अब भी ज्यों का त्यों वना हुआ है कि क्या बिना सुविधा शुल्क के सरकारी अस्पताल में आम आदमी का इलाज संभव हो सकेगा । प्राप्त घटनाक्रम पर विचार करें तो भ्रष्टता के लिए बदनाम पुलिस ने जिस वृद्धा को बतौर इंसानियत जिला अस्पताल में इलाज को भर्ती कराया था उसे स्टाफ ने गैर मुनाफे का जान न सिर्फ अज्ञात में भर्ती किया बल्कि उसे अंधेरे वार्ड में रख कर बाहर से बंद भी कर दिया गया था। जब ठंड असहनीय हुई तो वृद्धा की करुण आवाज बंद दरवाजों से बाहर आने लगी यह अलग बात है कि अस्पताल स्टाफ ने उसे नज़र अंदाज़ करने का पूरा प्रयास भी किया लेकिन जब रहमदिल मरीजों की जिद के बाद मामला जिलाधिकारी तक पहुंचा तो अस्पताल स्टाफ की कार्यप्रणाली की कलई ही खुल गई। आनन फानन में सीएमओ डाक्टर प्रदीप कुमार वार्ष्णेय ने मौर्चा संभाला महिला को भोजन के साथ साथ कंबल भी उपलब्ध कराया गया। सोशल मीडिया की सुर्खियाँ बन चुकी पीडित महिला का पिछले पांच साल से लोची नगला में एक अध्यापक के घर में किराए पर रहना पाया गया है। वह अपना नाम सत्या देवी पत्नी लक्ष्मण दास बता रही है। वो अपने आप को नगला मंदिर के पास की रहने वाली भी बता रही है।